________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- मोक्ष मार्ग में बीस कदम। कहा :- “मिस्टर शाँ! जहाँ निरामिष भोजन की व्यवस्था न हो वहाँ कभी-कभी सामिषभोजन करने में कोई हर्ज नहीं। आप घर पर कुछ भी खाइये; परन्तु भोजमें इस बात की छूट रखिये कि यदि निरामिष भोजन कहीं न बना हो, तो सामिष भोजन भी कर लिया जाय।"
इस पर अहिंसा प्रेमी शाँने तत्काल दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया :- "मेरा पेट पेट ही है, कब्रिस्तान नहीं कि इसमें मुर्दो को भी स्थान दिया जाय!"
उस दिन शाँ भूखे ही घर लौट गयें; परन्तु अपने एक वाक्य से सब सुनने वालों के मस्तिष्क में उन्हों ने खलबली जरूर मचा दी।
एक बार सड़क के किनारे कुछ गायें खड़ी थी। वे बादशाह अकबर की ओर देख रही थीं। अकबर ने बीरबल से पूछा :- "ये गायें मेरी ओर देखकर क्या कह रही हैं ?" ।
समयनुसार वाणी का सदुपयोग करने में कुशल बीरबल ने कहा :- "जहाँपनाह! हम घास खाकर निर्वाह करती हैं। हम किसी को नहीं सताती। न झूठ बोलती हैं, न चोरी करती हैं और न विश्वासघात ही करती हैं। हम दूध देती है, जिससे मनुष्यों का पोषण होता है। हमारे बछड़े बैल बनकर खेतोंमें काम आते हैं। मरने के बाद भी हमारी चमड़ी जूतियों के रूप में हिन्दू-मुस्लिम का भेदभाव किये बिना सबके पाँवो की समानरूपसे रक्षा करती हैं; फिर कसाई हमारा बध किस अपराध में करते हैं ? न्याय कीजिये हमारे साथ! - ऐसा ये गायें अपनी मूक-भाषा में आपसे कह रही हैं।" ।
यह सुनते ही बादशाह ने बूचड़खानों में गौवधबन्दी का कानून बना दिया। गौवध करने वाले के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की; परन्तु आज स्वतंत्र भारतमें भी गौवध बन्दी का। कोई कानून नहीं बन पाया है! कौन कह सकता है कि यह वही देश है, जिसे अहिंसात्मक आन्दोलन के द्वारा अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधीने स्वतन्त्रता दिलाई थी?
अहिंसक वही बन सकता है, जिसके दिलमें दया हो- सहानुभूति हो । महाराज समुद्रविजय और महारानी शिवादेवी के सुपुत्र थे- कुमार अरिष्टनेमि । वे द्वारकानरेश महाराज उग्रसेन की सुन्दर कन्या राजीमती से विवाह करने के लिए बरात लेकर द्वारका पहुँचे।
रथ में बैठे कुमार नगर में प्रवेश कर ही रहे थे कि सहसा उनकी दृष्टि एक बाड़े में घिरे जंगली पशुओंके झुण्डपर पड़ गई।
कारण पूछने पर पता चला कि विवाहोत्सवमें सम्मिलित होने वाले सामिषाहारी अतिथियों का भोजन तैयार करने के लिए उन पशुओं को बाँधकर रखा गया है।
कुमार का संवेदनशील ह्रदय यह सुनकर करूणा से भर गया। इस भावी विशाल हत्याकाण्ड का कारण विवाह था; इसलिए कुमारने अपने को ही इस हिंसा का जिम्मेदार माना। बाड़ा खुलवाकर उन्होंने तत्काल सभी पशुओंको मुक्त करवा दिया।
फिर रथ लौटाने का आदेश देकर सारथी से कहा :
४८
For Private And Personal Use Only