Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 166
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • मोक्षमार्ग. जो सुख-दुख से ऊपर उठ जाता है, वह जीवनमुकत (जीवित रहते हुए भी मुक्त) बन जाता है-ऐसा योग वासिष्ट में ही अन्यत्र लिखा है : नोदेति नास्तमायाति सुखे दुःखे मुखप्रथा। यथा लाभस्थितेर्यस्य स जीवनमुक्त उच्यते।। जो कुछ मिल जाय उसी में सन्तुष्ट रहने वाला तथा सुख-दुःख में जिसके चेहरे की रोशनी न उदित होती है-न अस्त, उसे 'जीवनमुक्त' कहते हैं। जो अरिहन्तदेव की तरह जीवनमुक्त होते हैं, वे दूसरों को मुक्त कर सकते हैं-इस विषय में एक दृष्टान्त सुना कर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। भागवत सुनने से ब्रह्म ज्ञान होता है-ऐसा सुन कर किसी राजा ने एक पंडित से सप्ताह भर भागवत सुनी; परन्तु ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ; इसलिए उसने दक्षिणा देने से इन्कार कर दिया। इससे दोनों के बीच झगडा खडा हो गया। एक का आरोप था कि विवेचन अच्छा नहीं किया गया और दूसरे का आरोप था कि तन्मयतापूर्वक सुना ही नहीं गया। ___ सौभाग्य से उसी समय इधर-उधर भ्रमण करते हुए नारद जी वहाँ चले आये। दोनों के तर्क सुन कर दोनों को वे एक बगीचे में ले गये। वहाँ दोनों को अलग-अलग पेडों के तनों से रस्सी के द्वारा उन्होंने कस कर बाँध दिया। फिर आदेश दियाः- “आप दोनों एक-दूसरे के बन्धन खोल दीजिये।" दोनों ने इस कार्य में अपनी असमर्थता स्वीकार की। फिर नारद जी ने प्रतिबोध दियाः"ब्रह्मज्ञान बेचने-खरीदने की चीज नहीं है। वह बहुत पवित्र होता है- अमूल्य होता है। जिस प्रकार एक बँधा हुआ आदमी दूसरे के बन्धन नहीं खोल सकता; उसी प्रकार जो स्वयं रागद्वेष से बद्ध है, वह दूसरों को मुक्त नहीं कर सकता। बस यही समझाने के लिए मैंने आपको यह कष्ट दिया है क्षमा करें।' फिर नारद जी ने दोनों के बन्धन खोल दिये। कलह मिटाने के लिए दोनों ने उन्हें धन्यवाद दे कर प्रणाम किया। इस दृष्टान्त में समझने की बात यह भी है कि नारद जी स्वयं रस्सी से बँधे हुए नहीं थे; इसीलिए वे दोनों को मुक्त कर सके! आइये संसार के बन्धन से मुक्त होने के लिए हम भी “तिण्णाणं तारयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं॥" स्वयं तीरे हुए और दूसरों को तारने वाले, स्वयं मुक्त और दूसरों को मुक्त करनेवाले ऐसे वीतराग देव की शरण ग्रहण करें और उनके बताये हुए :नाणस्स सब्बस्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खम्।। -उत्तराध्ययन ३२/२ १५९ For Private And Personal Use Only

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