Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 140
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •परोपका. सन्त एकनाथ के जीवन की भी ऐसी ही एक प्रेरणाप्रद घटना है। अपने साथियों एवं शिष्यों के साथ गंगाजल लेकर वे एक बार तीर्थयात्रा के लिए चले जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने सड़क की एक ओर एक गधा देखा। वह प्यास के मारे छटपटा रहा था। दयासागर सन्त एकनाथ ने अपने कमंडलु का सम्पूर्ण गंगाजल उसे प्रेमपूर्वक पिला दिया। सन्तुष्ट होकर गधा एक ओर चला गया। इधर जब साथियों ने पूछा :- “महाराज! इतनी दूरी से ढ़ोकर बड़ी मुश्किल से लाया हुआ भी सारा गंगाजल आपने यहीं समाप्त कर दिया। अब पंढरीनाथ का अभिषेक भला आप कैसे करेंगे?' इस पर सन्त एकनाथ ने गम्भीर होकर कहा :- “साथियों! प्यासे गधे को जो जल मैंने पिलाया है, वह सीधा भगवान् पंढरीनाथ के चरणों में ही पहुंचा है, अन्यत्र कहीं नहीं। प्यासे गधे का रूप धारण करके स्वयं भगवान हमारी परीक्षा लेने आये थे कि हम परोपकार रूपी धर्म का पालन कर पाते हैं या नहीं।" सज्जनों को परोपकार में कैसा आनन्द आता है ? यह जानने के लिए महर्षि अबू अली दक्काक की एक जीवनघटना सुनिये : उन्हें एक दिन किसी श्रीमान के घर भोजन का निमंत्रण मिला। यथासमय वे भोजन करने के लिए चल पड़े। मार्ग में उन्हें एक बुढिया की ध्वनि इस प्रकार सुनाई दी :- "है खुदा! एक ओर तो तू मुझे बहुत-से पुत्र देता है, किन्तु दूसरी ओर हम सब के पेट खाली रखकर तड़पाता भी है। यह तेरा कैसा अनोखा व्यवहार है?' यह सुनकर चुपचापमहर्षि अपने गन्तव्य पर पहुँचे। वहाँ निमन्त्रण भेजने वाले श्रीमान से बोले :- “आज मुझे भोजन से भरपूर एक थाल चाहिये।'' - इससे प्रसन्न होकर श्रीमान् ने तत्काल स्वादिष्ट भोजन से भरा हुआ थाल उनके सामने लाकर धर दिया। महर्षि उस थाल को अपने सिर पर उठा कर उस बुढिया के घर ले गये। थाल बुढिया के सामने रख दिया। बुढिया उसे पाकर मारे खुशी के नाचने लगी। बुढिया की प्रसन्नता से दक्काक स्वयं भी प्रसन्नता का विशेष अनुभव करते हुए भूखे ही वहाँ से अपने घर की ओर चल पड़े! इसे कहते हैं-परोपकार। एक और मुस्लिम सन्त का उदाहरण सुनिये : मक्का की सत्तर(७०) बार यात्रा करने वाले महा तपस्वी अबुलकासिम नशोरावादी को मार्ग में एक दुबलापतला भूख से तड़पता कुत्ता दिखाई दिया। उस समय उनके पास खाने की कोई वस्तु नहीं थी। क्या करते? उसी समय सहमा उन्हें एक विचार सूझा। ऊँचे स्वर में वे चिल्लाने लगे :-“मैं एक रोटी के बदले अपनी चालीस मक्कायात्राओं का पुण्य देने को तैयार हूँ। कोई लेना चाहे तो १३३ For Private And Personal Use Only

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