Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 158
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • विवेक • आदमी :- “आम जनता की भलाई जब होगी, तब होगी; लेकिन मैं तो डूब रहा हूँ अभी मर रहा हूँ।” नेताजी :- " तुम्हारे एक के जिन्दा रहने से या मरने से क्या फर्क पडता है ? यदि तुम मर भी गये तो मेरा काम और भी सरल हो जायगा । मैं संसद के बीच तुम्हारा उदाहरण प्रस्तुत कर सकूँगा कि- अमुक गाँव में पाल न होने से एक आदमी गिर पड़ा और मर गया। इससे मेरे विधेयक को और भी बल मिल जायगा और जल्दी ही वह पारित होकर कानून का रूप धारण कर सकेगा। तुम्हें शहीद बनने का अवसर मिल सकेगा। सारा हिन्दुस्तान तुम्हारी मूर्ति के ऊपर फूल चढा कर तुम्हारा सन्मान करेगा। तुम मर कर भी अमर हो जाओगे ।" आदमी:- "मुझे अमर नहीं बनना है। मुझे बाहर निकालो। मेरी जान बचाओ ।" किन्तु आदमी की इस बात को सुनने से पहले ही नेता जी वहाँ से रवाना हो चुके थे। नेता जी के बाद एक ईसाई पादरी ने उसकी आवाज सुनी। वह बहुत प्रसन्न हो गया। अपने झोले से उसने डोरी निकाली और कुएँ में लटका दी । डोरी पकड कर आदमी उसके सहारे बाहर निकल आया । बोला :- " आपने मेरी जान बचाई, बहुत कृपा की; इसके लिए बहुतबहुत धन्यवाद ।" पादरी :- "कृपा ? अरे भाई ! मैंने कोई कृपा नहीं की । कृपा तो आपने ही मुझ पर है कि कुएँ में गिर कर मुझे मानव सेवा का अवसर दिया। महात्मा ईसा ने कहा है कि मानव सेवा ईश्वर की पूजा है। मैंने आज आपको बचा कर ईश्वर की पूजा की है यदि आप पहले की तरह फिर से गिर जायँ तो मुझे दुबारा ईश्वर पूजा का अवसर मिल सकता है।" यह कह कर पादरी ने उसे फिर से कुएँ में धक्का दे दिया और दुबारा निकाला। आदमी ने कहा : "यह क्या ? तुम तो मुझे बार-बार गिरा कर मार डालोगे ! " ऐसा कह कर वह वहाँ से भाग गया। अविवेक के कारण लोग सिद्धांतों के केवल शब्द पकड़ लेते हैं और उनका अर्थ, अभिप्राय आशय छोड़ देते है । दूसरों की सेवा (परोपकार) के जहाँ सहज भाव न हों वहाँ कैसा विवेक ? विवेकः किं सोऽपि स्वरसजनिता यत्र न कृपा ? [ जिस कृपा-करुणा-सहायता में भीतर से रस (आनन्द) न आता हो, वह भी क्या कोई विवेक है ?] अच्छे-बुरे का ज्ञान विवेक से होता है। उसके बाद जो अच्छा है, उसे स्वीकार करना चाहिये - जीवन में उतारना चाहिये । अविवेकी अपनी बुद्धि से काम नहीं लेता । वह अनुकरण करता है । भीड जिस रास्ते पर जा रही हो, उसी रास्ते पर वह बिना सोचे-विचारे चल पड़ता है । For Private And Personal Use Only १५१

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