Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 157
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम - [फडकती हुई भुजाओं के द्वारा घुमाई गई गदा के प्रचण्ड आघात से दुर्योधन के दोनो ऊरूओं को तोड कर उनसे निकले गाढे खून से लथपथ लाल हाथों से हे, द्रौपदी मैं भीम तेरी वेणी को संवारूँगा!] इस प्रकार दोनों में एक ही वाक्य से (जो द्रौपदी ने कहा था) स्थायी शत्रुता का सूत्रपात हो गया । फलस्वरूप महाभारत नामक महायुद्ध हुआ, जिसमें अट्ठारह अक्षौहिणी सेना का भीषण नरसंहार हुआ और तब दोनो महारथियों की प्रतिज्ञाएँ पूरी हुई। अविवेक से किस प्रकार अच्छे सिद्धान्तों का दुरूपयोग होता है ? इस पर एक मनोरंजक दृष्टान्त सुनिये : किसी गाँव के बाहर दशहरे का मेला लगा था। बीच में एक कुआँ था। भीडभडक्के में एक ऐसा आदमी उसमें गिर पडा, जिसे तैरना बिल्कुल नहीं आता था। वह किसी तरह बाहर निकली ईट को पकड कर लटका हुआ था। वह चिल्लाने लगा :- "बचाओ, बचाओ, मैं डूब रहा हूँ, बचाओ।" एक बौद्ध भिक्षु उधर से निकला, पुकार सुनकर बोला :- “जीवन में सुख की अपेक्षा दुःख बहुत अधिक है, इसलिए बाहर निकलने पर भी क्या लाभ होगा? फिर पिछले जन्म में तुमने किसी को कुएं में गिराया होगा, इसलिए इस जन्म में तुम भी गिरे हो, अपने-अपने कर्म का फल सब को भोगना ही पड़ता है। फलको शान्ति से भोग लो।" पानी पीकर भिक्षु चला गया। थोडी देर बाद आये एक नेताजी। उन्हें तो भाषण और आश्वासन देने के अवसर की तलाश थी।कुएँ के भीतर से आने वाली अवाज से उन्हें वह अवसर मिल गया।बोलेः- “धीरज रखो। कुछ दिन बात ही संसद का अधिवेशन होने वाला है। मैं उसमें विचारार्थ एक विधेयक प्रस्तुत करूँगा कि पूरे भारत-वर्ष के सात लाख गाँवों के सब कुओं पर पालें बँधवाना अनिवार्य कर दिया जाय।" ___ आदमी :- “कब अधिवेशन होगा और कब पालें बँधेगी? पता नहीं; परन्तु मुझे तो वे पालें भी नही बचा सकेंगी!" नेता :- "तुम तो केवल अपना ही भला सोचने वाले हो। तुम से बढ कर स्वार्थी मुझे कहीं नहीं मिला। अच्छा आदमी वह है, जो दूसरों का भला सोचे। केवल अपनी भलाई की बात-अपने लाभ की बात तो कीड़े-मकोडे भी सोचते हैं। तुम कीडे मकोड़े नहीं हो मनुष्य हो।" आदमी :- “तो आप भी सच्चे मनुष्य बन कर मेरा भला कर दीजिये-मुझे बाहर निकाल दीजिये।" नेता :- "हम इक्के-दुक्के का भला नहीं सोचते। हम तो जनताजनार्दन के पुजारी हैं। आम जनता का भला सोचते हैं। सबकी भलाई के कार्य करते हैं।" । १५० For Private And Personal Use Only

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