Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८. मनः संयम मनस्वियो! मन दो काम करता है-चिन्ता और चिन्तन । चिन्ता को चिता से अधिक भयंकर माना गया है; क्योंकि चिता शरीर को एक ही बार जलाती है, परन्तु चिन्ता उसे बार-बार जलाती है। चिन्ता करने वाले का शरीर सूख जाता है। चिन्ता आग है। मन का दूसरा काम है- चिन्तन । यह भी आग है, परन्तु यह ऐसी आग है, जो कर्मो को जलाती है। शरीर को वह कोई हानि नहीं पहुँचाती। __ मन एवं मनुष्याणाम् कारणं बन्धमोक्षयोः।। [मन ही मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण है।] ___ मन से यदि विषयासक्ति बढ़ेगी तो उससे संसार का बन्धन प्राप्त होगा और विषयविरक्ति होगी तो उससे मोक्ष की स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकेगी। मन से यदि कषाय की आग लग गई तो वह आत्मा को झुलसा देगी-कलुषित बना देगी और चिन्तन की ज्योति प्रगट गई तो वह आत्मा को शीतल निर्मल उज्जवल बना देगी। चिन्ता हमें संसार की ओर ले जाती है, चिन्तन मोक्ष की ओर ले जाता है। चिन्ता हेय है, चिन्तन उपादेय। कुछ लोगों की ऐसी मान्यता है कि मन की स्थिति आहार पर अवलम्बित है ।एक कहावत भी है : जेसा खावे अन्ना वैसा होवे मन॥ ___ आहार के अणु विचारों को प्रभावित करते है। दृषित आहार से विचार दूषित होंगे और शुद्ध आहार से शुद्ध । बिना पासपोर्ट के विदेशयात्रा नहीं होती, उसी प्रकार बिना सात्त्विक आहार के सुविचार से सदाचार तक और सदाचार से सद्व्यवहार तक की यात्रा नही हो सकती। ___ आजकल आहार की कोई मर्यादा नहीं रही। अस्सी प्रतिशत लोग जैसा आहार करते हैं, उसी पर डॉक्टर लोग पलते हैं-उनकी आजीविका चलती है। सत्त्वहीन चटपटे, मसालेदार खाद्य पदार्थ पेट को बिगाडते हैं; परन्तु होटलों को सुधारते हैं। जितनी संख्या होटलों की बढी है, उतनी होस्पीटलों की भी बढी है। इन दोनों की वृद्धि के मूल में है खानपान और असंयम। ___हॉटलें तो अपने पास न आने की वार्निंग देती है। उनका नाम देखिये। बड़े अक्षरों में लिखा रहता है- “हिन्दू होटल" दुसरा मतलब है- यदि (तू) हिन्दू हो (तो) टल! चला जा यहाँ से । यहाँ आने से तेरी पवित्रता नष्ट होगी-तन्दुरस्ती खराब होगी; परन्तु स्वाद का लोभी मनुष्य वहाँ जाता ही है- उस साइन बोर्ड की वार्निंग पर वह ध्यान नहीं देता तो होटलों का इसमें क्या कसूर? १३७ For Private And Personal Use Only

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