Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदमक्यों न प्रसन्नता से मरूँ- ऐशो आराम से मरूँ? __ उन्होंने टेलरमास्टर को बुलाया। कहा कि नाप लो और बहुत-से कोट-पेंट सीकर जल्दी से जल्दी दो। टेलर ने नाप लिया। कॉलर का नाप चौदह इंच का निकला। इससे पहले के कोट बारह इंची कालर से बने थे। मुल्ला ने कहा :- "भद्दा न लगेगा? पहले के कोट के अनुसार बारह इंची काँलर ही बनाओं!" टेलर मास्टर :- "मैं वैसा बना तो दूंगा, परन्तु पहले से आपके गले का नाप कुछ बढ़ गया है। इसलिए बारह इंची काँलर से साँस लेने में तकलीफ होने लगेगी!" मुल्ला खुशी के मारे नाचने लगा और अपनी मूर्खता पर स्वयं ही हँसते हुए बोला:"सच्चा डॉक्टर तो पडौस में ही था और मैं व्यर्थ ही विलायत में भटकता रहा! कैसा बेवकूफ हूँ मैं ?" जहाँ रोग जन्म लेता है, वहीं उस का इलाज भी होता है। यदि मन में अशान्ति पैदा होती है तो शान्ति भी वहीं मिलेगी, अन्यत्र नहीं, किंतु यह तभी संभव है, जब ज्ञान प्राप्त किया जायःआत्मानं स्नपयेन्नित्यम् ज्ञाननीरेण चारूणा।। -तत्वामृतम् [सुन्दर ज्ञानजल में सदा आत्मा को नहलाना चाहिये] किन्तु लोग ज्ञानजल की अपेक्षा गंगाजल पर अधिक विश्वास करते है। गुरुनानक एक दिन गंगातट पर स्नान कर रहे थे। उसी समय उनकी नजर एक ब्राह्मण पर पडी, जो कुछ ही दूरी पर हाथों से जल पी रहा था। नानक जी ने कहा :- अरे भाई! यह मेरा लोटा ले लो और उससे जल पीओ, ब्राह्मण :- “नही आपका लोटा अपवित्र है।" नानक :- "लोटा न झूठ बोलता है, न चोरी करता है, न हिंसा करता है, और न व्यभिचार । फिर यह अपवित्र कैसे ?' ब्राह्मण :- "लोटा तो ब्राह्मण का ही पवित्र होता है, दूसरों का नहीं?" नानक :- "क्यों नहीं होता ? मैंने इसे तीन बार मिट्टी से रगड-रगड कर गंगाजल से धोया है!" ब्राह्मण :- “उससे क्या फर्क पडता है ?" नानक :-- “यही मैं आपके मुँह से सुनना चाहता था।" जब तीन बार गंगाजल में स्नान करने से भी लोटा पवित्र नहीं हुआ तो मनुष्य भी गंगाजल में स्नान करने से भला कैसे पवित्र हो जाता होगा? स्नान से शरीर का ही मैल कट १४२ For Private And Personal Use Only

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