Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 108
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri .त्याग. इसीलिए प्रभु महावीर ने कहा है : वत्थंगन्धमलंकारम् इत्थीओ सयणाणि । अच्छंदा जेन भुंजन्ति न से चाइत्ति वुच्चई॥ -दशवकालिक वस्त्र, गन्ध अलंकार, स्त्री और शय्या (सेज) - जो इन चीजों को विवशता से (अभाव के कारण) नहीं भोगता, वह त्यागी नहीं कहलाता] इससे विपरीत : जे य कन्ते पिये भोए लद्धेवि पिट्टि कुब्बइ। साहीणे चअइ भोए से हु चायित्ति वुच्चइ। -दशवैकालिक (जो प्राप्त मनोहर प्रिय भोगों को पीठ दिखाता है – प्राप्त भोगों का भी त्याग करता है, वही त्यागी कहलाता है) एक आदमी अपनी परछाई पकड़ना चाहता था। इसके लिए वह उसके पीछे भागता रहा; परन्तु हाथ में नहीं आई। वह थक कर हाँफने लगा। उसी समय किसी मुसाफिर ने उसकी परेशानी को दूर करने का उपाय सुझाया कि वह छाया की ओर पीठ कर के भागे तो छाया उसका पीछा करने लगेगी। उसने वैसा ही किया। वह सूर्यकी ओर मुँह करके दौड़ने लगा। अब छाया ही स्वयं उसका पीछा करने लगी। यही बात भौतिक सुखसामग्री के लिए कही जा सकती त्याग कियाँ जावै तुरत जो कोइ वस्तु जरूर। आश कियाँ थी "आशिया!" जाती देखो दूर।। कच्चे फल को ही तोड़ना पड़ता है; परन्तु पका फल वृक्ष का स्वयं त्याग कर देता है। वही फल स्वादिष्ट भी होता है। विचारों में जब परिपक्वता आती है-दृढ़ता आती है-निर्मलता आती है- उच्चता आती है, तब संसार का त्याग सहज हो जाता है। त्यागी को उस त्यागका आनन्द भी आता है। __ एक योगी के पास पारस पत्थर था। उस पत्थर के विषय में ऐसी परम्परागत प्रसिद्धि है कि उसके सम्पर्क से लोहा सोने में रूपान्तरित हो जाता है। किसी निर्धन व्यक्ति ने कई महीनों तक उस योगी की सेवा की। सेवा से सन्तुष्ट होने पर योगी ने कुछ माँगने की बात कही। उसने पारस पत्थर माँग लिया। योगी ने दे भी दिया। गरीब आदमी पारस पत्थर लेकर अत्यन्त प्रसन्नता के साथ अपने घर पहुंचा।कुटुम्बियों को अपनी उपलब्धि से चकित करने के लिए उसने सबसे पहले लोहे की कोठी पर प्रयोग किया। कोठी में पत्थर रख दिया; परन्तु दिनभर उसमें पत्थर पड़ा रहा; फिर भी कोठी सोने की नहीं १०१ For Private And Personal Use Only

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