Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 137
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम - [कौन सा मनुष्य है, जो अपने लिए इस संसार में जीवित नहीं रहता ? (स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सभी जीवित हैं) परंतु जो दूसरों की भलाई के लिए जीवित रहता है, वही वास्तव में जीवित है (अन्य सब मृत हैं)] जिसके जीवन में परोपकार नहीं है, उससे तो घास ही अच्छी! कैसे ? एक कवि के शब्दों में देखिये : तृणं चाहं वरं मन्ये, नरादनुपकारिणः। घासो भूत्वा पशून् पाति भीरून् पति रणांगणे॥ -सुभाषिररत्नभाण्डागारम् [अनुपकारी मनुष्य से तो मैं तिनके को अच्छा मानता हूँ, जो घास बनकर पशुओं की रक्षा करता है और युद्ध क्षेत्र में कायरों की] लड़ते-लड़ते जब किसी योद्धा की हिम्मत टूट जाती है, तब वह मुंह में तिनका लेकर बच जाता है। तिनका लेकर वह प्रकट करता है कि मैं आपकी गाय हूँ, मुझे मत मारिये। उसके इन भावों को समझ कर विजेता वीर, उसे मुक्त कर देता है-अभयदान दे देता है। माने पर पशु की चमड़ी भी जूते-चप्पले का रूप धारण करके मनुष्य के पाँवों की रक्षा का परोपकार करती है। मनुष्य जीवित रहकर भी यदि परोपकार नहीं करता तो वह उस पशु से भी निकृष्ट है, गया-बीता है। कहा है : परोपकारशून्यस्य धिङ् मनुष्यस्य जीवितम्। जीवन्तु पशवो येषाम् चर्माप्युपकरिष्यति॥ -शाङ्घरपद्धतिः [परोपकार से रहित मनुष्य के जीवन को धिक्कार हो। पश जीवित रहें, जिनका चमडा भी उनके मरने के बाद उपकार करता रहेगा] परोपकार मन्जनों का स्वभाव बन जाता है : अपेक्षितगुणदोषः परोपकारः सतंव्यसनम्।। [प्रदोष का विचार किये बिना परोपकार करते रहना सज्जनों का व्यसन (स्वभाव) बन जाता। दूसरों की भलाई के लिए धन ही क्यों ? प्राण तक न्यौछावर करने को वे तैयार रहते हैं; क्योंकि वे जानते हैं : परोपकारः कर्तव्यः प्राणैरपि धनैरपि। परोपकार पुण्यम् न स्यात्क्रतुशतैरपि।। [प्रागों से और धन से भी परोपकार करते रहना चाहिये; क्योंकि उससे जितना पुण्य होता है उतना सैंकड़ों यज्ञों से भी नहीं होता।] १३० For Private And Personal Use Only

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