Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम. धक्का लगा तो वो धबा धब पानी में गिर पड़े! गीले कपड़ों के साथ जब वे बाहर निकले और उन्होंने धक्के का कारण पुछा तो प्रत्यैक अगली पंक्ति वाले ने एक ही उत्तर दिया :- "कारण हमें क्या मालूम ? हमने तो पीछे से चली आई और आगे की ओर धकाई!' अन्त में बड़े मुल्ला तक प्रश्न पहुँचा तो उन्होने पीठ खाज चलने का असली कारण बताया और सब अपनी अपनी मुर्खता पर हँस पड़ें। ___ यदि पूजा, प्रतिक्रमण, पौषध, तप प्रत्याख्यान, सामायिक, वन्दन आदि धार्मिक क्रियाएँ भी आप “पीछे से आई और आगे धकाई" वाले सूत्र के आधार पर केवल वढ के रूप में करेंगे तो उन में स्वाद नहीं आयगा। उन क्रियाओं में आत्मा भीगनी चाहिये । समझ कर करने पर उनमें स्वाद आ सकेगा; अन्यथा नहीं। बड़े मुल्ला शादी करके अपने गाँव में आये। सबसे कहा; परन्तु बीबी उनके साथ नहीं थी, सो किसी ने उनपर विश्वास नहीं किया। सास-ससुर ने कहा कि महीनेभर बाद आकर बीबी को ले जाना; परन्तु इधर लोग शादी की बात को ही गप्प मान रहे थे। इससे उनके अहं को चोट लगी। वे तत्काल अपनी ससुराल पहुँचे। सास-ससुर से कहा कि मैं तो कल ही बीबी को ले जाना चाहता हूँ। आप उसे तैयार कर दीजिये। सास-ससुर ने स्वीकृति दे दी। तैयारी करके अगले दिन उसे मुल्ला के साथ बिदा कर दिया । चलते-चलते रास्ते में एक नदी आई। बीबी शौहर पर रौब गालिब करने के फिराक में थी. उसे यह अच्छा मौका मिल गया था। बोली:- “मियाँ! मेरे पाँवों में मेंहदी लगी है। नदी के जल से रँग उड़ न जाय-इस तरह मुझे ले जाइये।" वह मियाँ के कन्धे पर सवार होने का सुख लूटना चाहती थी। मियाँ भी उस्ताद थे। उसकी बात को समझ गये। बोले :- “ठीक है। मैं पूरी कोशिश करूँगा कि तेरा रंग कायम रहे।" फिर बीबी के पाँव ऊँचे और सिर नीचे करके छाती से उसे चिमटाये हुए नदी में चल पड़े। पत्नी के मुंह में और नाक में पानी भरने लगा। श्वासोच्छ्वास लेने में कठिनाई होने लगी। दम घुट जाने से वह मर गई। फिर भी वे उसे छाती से लगाये हुए ही अपने गाँव में पहुँचे। लोगों से कहा :- “यह देखो बीबी ले आया हूँ ससुराल से!'' किसी ने कहा :- "बड़े मुल्ला! इस का जीव गया।" मुल्ला ने पिछला किस्सा सुनाकर कहा :- “जीव भले ही गया हो, रंग तो रहा!" - लोग हँसकर लोटपोट हो गये। हम भी जप, तप आदि समस्त धार्मिक क्रियाओं में समझने की कोशिश नहीं करेंगे तो अपने को हँसी का पात्र बनाये एगें। वहाँ प्राणों का पता नहीं है। जरूरत है उन क्रियाओं में विवेक की - रूचि लेने की-प्राण फूंकने की! हमारा धर्म ११८ For Private And Personal Use Only

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