Book Title: Moksh Marg me Bis Kadam
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९: उदारता विशाल ह्रदयी महानुभावो! हृदय की विशालता में उदारता का निवास होता है और संकुचितता में कंजूसीका: अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥ (यह अपना हैं-- यह पराया है; ऐसी बात छोटे मनवाले सोचते हैं। जिनका चरित्र उदार है, उनके लिए तो सारी पृथ्वी ही एक कुटुम्ब के समान है।) पेड़को देखिए। वह पशु-पक्षियों को आश्रय देता है। मुसाफिरों को अपनी छायामें विश्राम देता है। पत्थर फेंकने वालोंको भी उदारतापूर्वक फल देता है। तिरूवल्लुवरका कथन है :"उदार आदमीका वैभव गाँव के बीचों बीच उगे हुए फलों से लदे वृक्षो के समान है।" जिस प्रकार उस फलदार वृक्षके फलों का उपयोग गाँव के सब लोग आनी से कर सकते हैं, उसी प्रकार उदार सज्जन की सम्पत्तिका उपभोग भी सब लोग आसानी से कर सकते उदारता अधिक से अधिक दे डालने मे नहीं; किन्तु समझदारी के साथ देने मैं है। उदार उड़ाऊ नहीं होता। वह फिजूलखर्ची से दूर रहता है। जहाँ देना अत्यन्त जरूरी समझता है, वहीं देता है। उदारता अपराधी पर भी करूणा बरसाती है : कृतापराधेऽविजने, कृपामन्थरतारयोः। ईषद्बाष्पायोद्रम् श्रीवीरजिननेत्रयोः॥ [अपराध करने वाले (उपसर्ग करके कष्ट देनाले संगम नामक देव) पर भी करूणा से मन्थर (मन्दगतिवाली) कनीनिकाओं से युक्त आँसुओंसे कुछ भीगे प्रभु महावीर के दोनों नेत्रोंका कल्याण हो।] यहाँ प्रभुकी आँखों में आँसू कष्टों के कारण नहीं आये; परन्तु इस कारण आये कि यह कष्ट देनेवाला बेचारा दुर्गति पायेगा-नरकमें जायगा और वहाँ असह्य कष्टों से तड़पेगा! उन आँसुओं के पीछे थी- उनकी करूणा, वत्सलता और उदारता! उदार व्यक्ति सहज हितकारी होता है। याचक से उसकी तुलना करते हुए कहा गया ६५ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169