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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम . जो व्यक्ति स्वयं आचरण से दूर भागते हैं, उन्हें उपदेश के लिए मुंह खोलने का कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिये।
कबीर साहब ने कहा था :करनी करै सो पूत हमारा कथनी कथै सो नाती। रहणी रहै सो गुरु हमारा हम रहणी के साथी।। गुरूजी ने कौरवों और पाण्डवों को पढाया :
"सत्यं वद । धर्मचर॥"
(सच बोलो। धर्म का आचरण करो।) . दूसरे दिन सबने अपना-अपना पाठ याद करके सुना दिया; परन्तु युधिष्टिर को पाठ याद नहीं हो सका । गुरुजीने उन्हें डाँट दिया; परन्तु तीसरे दिन भी जब युधिष्ठिर ने यही कहा कि मुझे अभी पाठ याद नहीं हुआ है, तब गुरूजीने उनके गालों पर दो थप्पड़ें जमा दीं।
थप्पड़ें खाने के बाद युधिष्ठिकरने मुस्कुराते हुए कहा :-- "आपकी कृपासे अब मुझे पाठ याद हो गया है!'' गुरुजी :- “अच्छी बात है। सुनाओं।'
युधिष्ठिर :- “गुरूदेव! सुनाऊँ क्या? मैं तो परीक्षा भी दे चुका हूँ और उसमें उत्तीर्ण भी हो गया हूँ।"
गुरुजीने आश्चर्य से पूछा कि तुम्हारी बात पहेली की तरह समझ में नहीं आ रही है। जरा विस्तार से कहो।
युधिष्ठिर :-- "गुरूदेव ! क्रोध न करना धर्म है। मुझे संशय था कि क्रोध का अवसर आने पर मैं शान्त रह भी सकूँगा या नहीं; इसलिए “सत्यं वद" इस पाठ की शिक्षा के आधार पर मैं सच बोल रहा था कि मुझे पाट याद नहीं हुआ है; किन्तु अभी-अभी दोनों गालों पर आपकी थप्पड़ें खाकर भी जब मुझे बिल्कुल क्रोध नहीं आया, तब संशय मिट गया और मैंने स्वीकार लिया कि मुझे पाठ याद हो गया है।''
___ इस उत्तर से गुरूजी बहुत प्रसन्न हुए। बचपन में सिखायें हुए पाठों को इसी प्रकार आचरण में उतार-उतार कर वे "धर्मराज युधिष्ठिर''के रूपमें प्रसिद्ध हुए।
एक दिन लम्बें प्रवास से थके हुए मुहम्मद साहब अपने शिष्यों के साथ किसी गाँव की सीमापर आराम कर रहे थे कि उधर से किसी आदमी की शबयात्रा निकली।
तत्काल पैगम्बर साहब उसके सम्मान में खड़े हो गये। शिष्यों ने कहा :- "हजरत! यह तो किसी यहूदी की शबयात्रा थी।"
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