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अहिंसा •
महाराज प्रसेनजित डाकू अंगुलिमाल के उपद्रवों से परेशान थे। प्रजाजन उसके नाम से थर-थर काँपते थे । करुणासागर महात्मा बुद्ध ने अपनी अहिंसक शक्ति से उसे सुधारने का निश्चय किया।
धीरे-धीरे चलते हुए वे अटवी में पहुँचे, जहाँ डाकू अपने साथियों के साथ रहा करता था। दूरसे महात्माजी को अपनी ओर आते देखकर डाकू ने अपनी तलवार सँभाली; परन्तु आगन्तुक के हाथ में तो लाठी तक नहीं थी । वह बड़े विचार में पड़ गया कि यह कौन व्यक्ति है, जो मेरा नाम नहीं जानता । उसने कड़क कर कहा :- “ऐ बटोही ! तू किधर मौत के मुँह घुसा चला आ रहा है ? क्या तुझें अपनी उँगलियाँ प्यारी नहीं हैं ? तुझे शायद पता नहीं कि यह डाकुओं की बस्ती है। मैं डाकुओं का सरदार अंगुलिमाल हूँ। मैं मुसाफिरों के हाथों की उंगलियाँ काट कर उनकी माला बना लेता हूँ और हमेशा ऐसी एक नई माला अपने गले में धारण करता हूँ; यही कारण है, जिससे मेरा नाम अंगुलिमाल पड़ गया है। आजा, आज तेरे हाथों की उँगलियोंसे ही अपनी माला प्रारम्भ करूँ।"
में
महात्मा बुद्ध :- " भाई ! हाथों को उँगलियां काम करने लिए मिली हैं, काटने के लिए
नहीं ।"
डाकू :- "मुझे उपदेश देता है ? ठहर अभी चखाता हूँ तुझे इसका मजा ।"
बुद्ध :- “मैं तो विश्वप्रेम की भावना में ठहरा ही हुआ हूँ और आत्मरमण का आनन्द चखता रहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी तरह तुम भी ठहर जाओ । जगत् को रूलाने को नहीं, उसके आँसू पोंछने का प्रयास करो, जिससे तुम्हारा जीवन निर्भय और सुखी बने। जैसे तुम्हें अपनी उँगलियाँ प्यारी हैं, वैसे ही सब लोगोंकी प्यारी हैं। उँगलियाँ काटने पर तुम्हें जितना दुःख होता है, उतना ही उससे दूसरों को भी होता है; इसलिए यह क्रूर कार्य बन्द कर दो। शक्ति का निवास दूसरों को आतंकित करने नहीं, किन्तु दूसरों का भला करने में- सेवा करने में हैं ।"
इससे प्रभावित होकर अंगुलीमाल महात्मा बुद्ध का शिष्य बन गया। दूसरे दिन दर्शनार्थ आये महाराज प्रसेनजितने स्वयं भी अंगुलिमाल मुनि को वन्दन किया । अहिंसा धर्म की स्वीकृति . ने उसे वन्दनीय बना दिया था ।
दयालु अहिंसक सिर्फ मनुष्यों पर ही नहीं, पशुओं पर भी दया का व्यवहार करता है। वह निरामिष - भोजी होता है।
विश्वविख्यात नाटककार बर्नार्डर्शा शाकाहारी थे और शाकाहार का प्रबल शब्दों में सर्वत्र समर्थन भी किया करते थे । एक दिन उन्हें कहीं से भोजका निमन्त्रण मिला । वे चले गये । भोजन सामिष था, जो शाँ की रूचिके अनुकूल नहीं था । वे परोसे हुए भोजन की मेज छोड़कर अन्यत्र बैठ गये । अन्य लोगों ने जब शाँको चुपचाप बैठे हुए देखा तो उनमें से किमीने
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