Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 14
________________ आपके भीतर यह होगा कि आपको लगेगा कि अगर हड्डी-मांस की इस देह में यह संभावना हो सकी कि यह सौंदर्य फलित हुआ है, तो क्या मेरे हड्डी-मांस दूसरे ढंग के बने हुए हैं? क्या महावीर के हड्डी - मांस किसी विशेष ढंग के बने हुए हैं? कुछ ऐसे नासमझ हैं, जो कहेंगे, विशेष ढंग के बने हुए हैं। कुछ ऐसे नासमझ हैं, जो कहेंगे, उनके शरीर में खून ही नहीं है, दूध भरा हुआ है! लेकिन मैं आपको कहूं, उनके शरीर में बिलकुल वैसे ही खून है, जैसे आपके शरीर में है । और उनकी हड्डियां बिलकुल वैसी ही नश्वर हैं, जैसी आपकी हैं। यह मैं इसलिए कहना चाहता हूं ताकि आपको यह न भूल जाए कि महावीर होना आपकी भी संभावना है। अगर महावीर के शरीर में दूध रहता हो खून की जगह, तो फिर आप महावीर नहीं हो सकते। अगर महावीर की काया वज्र - काया हो, तो फिर आप महावीर नहीं हो सकते। कमजोर लोग जो दो-चार दिन में अस्पताल जाते हों, ये महावीर कैसे होंगे ! उन नासमझों ने जिन्होंने यह प्रचार किया कि महावीर की काया वज्र-काया थी और जिन्होंने यह प्रचार किया उनका शरीर कोई दूसरे नियम पालता था, उन्होंने सारी दुनिया को महावीर से वंचित कर दिया। मेरी बात हो सकती है ऐसा लगे कि मैं महावीर को नीचे उतार रहा हूं ! मैं महावीर को एक सामान्य आदमी बना देना चाहता हूं, ताकि सामान्य आदमियों के वे काम के हो जाएं। जो सीढ़ी आप तक न पहुंचती हो, वह आपको आकाश तक कैसे ले जाएगी ? वही सीढ़ी ऊपर उठा सकती है, जो मेरे पैर तक आती हो। अगर महावीर को अपना सिर बनाना है, अगर महावीर की ऊंचाई तक उठना है, तो महावीर की सीढ़ी आप तक आनी चाहिए। एक गलती हुई पीछे सदियों में, आदर और श्रद्धा के मोह में हमने इन सारे लोगों को अलौकिक बना दिया। हमने महावीर को, बुद्ध को भगवान बना दिया । और हमने कहा कि वे अलौकिक पुरुष हैं! हमने अपने प्रेम में ये बातें कहीं, लेकिन हमें पता न रहा कि यह प्रेम मंहगा पड़ जाएगा। और यह प्रेम मंहगा पड़ गया। अब हम उनकी श्रद्धा करते हैं और आदर करते हैं, लेकिन कभी यह आकांक्षा हमारे भीतर पैदा नहीं होती कि हम महावीर बन जाएं। और अगर मैं आपसे कहूं कि मेरे मन में यह आकांक्षा पैदा हो कि मैं महावीर बन जाऊं, तो अनेक को तो ऐसा लगेगा यह बात तो नास्तिकता की हो गई, अनेक को तो ऐसा लगेगा यह महावीर का अपमान हो गया। मैं आपको कहूं कि अगर इसमें महावीर का अपमान भी होता हो, तो भी मैं तैयार हूं। क्योंकि महावीर का कोई क्या अपमान कर सकेगा ! मान-सम्मान के जो पार निकल गए हों, उनका कोई अपमान नहीं कर सकता। लेकिन आपका मैं सम्मान जरूर कर सकता हूं। महावीर के अपमान में भी अगर आप सम्मानित होते हों, एक क्षुद्रतम मनुष्य अगर महावीर के अपमान सम्मानित होता हो, हम महावीर का अपमान करने को तैयार हैं- उस क्षुद्रतम मनुष्य को ऊपर उठाने के लिए, उसे महावीर तक पहुंचाने के लिए। महावीर आप जैसे व्यक्ति हैं- आप ही जैसे व्यक्ति । लेकिन एक दिन आया कि वे आप जैसे बिलकुल नहीं रह गए। वे बिलकुल आप ही के जैसे हड्डी - मांस के बने हुए व्यक्ति हैं। लेकिन एक वक्त आया कि उनके भीतर एक ऐसी आत्मा का उदय हुआ, जो अलौकिक है। देह 7

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