Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 12
________________ तो आपकी झूठी श्रद्धा छूटे। आपका यह खयाल मिट जाना चाहिए कि खून से और पैदाइश से मैं धार्मिक हो सकता हूं। धार्मिक होना अंतस-चेतना के परिवर्तन से होता है। यह तो पहली बात आपके संबंध में कहूं। दूसरी बात आपके संबंध में यह कहना चाहूंगा कि शायद आपको यह पता न हो कि धर्म क्या है? आप रोज सुनते हैं जैन धर्म, हिंदू धर्म, मुसलमान धर्म। ये सब नाम हैं, ये धर्म नहीं हैं रहस्यद अप सोचते हों कि धर्म का संबंध किन्हीं सिद्धांतों को याद कर लेने से है। शायद आप सोचते हों किसी तत्व-प्रणाली को, किसी फिलॉसफी को, किसी तत्व-दर्शन को सीख लेने से है। तो आप भूल में होंगे। __धर्म का संबंध किन्हीं सिद्धांतों के स्मरण कर लेने से और याद कर लेने से नहीं है। आपको सारे सिद्धांत याद हो जाएं, तो भी आप धार्मिक नहीं बन सकेंगे। स्मृति से धर्म का क्या संबंध है? कोई भी संबंध नहीं है। यह हो सकता है कि आप सारे धर्म के सिद्धांत दोहराने लगें, वे आपकी वाणी और विचार में प्रविष्ट हो जाएं, उससे कुछ भी न होगा। बहुत लोग समझते हैं धर्म के संबंध में कुछ जान लेंगे तो धार्मिक हो जाएंगे। धर्म के संबंध में कुछ भी जानने से कोई धार्मिक नहीं होता। कोई धार्मिक हो जाए तो धर्म के संबंध में सब जान लेता है। इस सूत्र को मैं पुनः दोहराऊं, धर्म के संबंध में जान लेने से कोई धार्मिक नहीं होता, धार्मिक कोई हो जाए तो धर्म के संबंध में सब जान लेता है। तो यदि आप जैन धर्म के संबंध में कुछ जानते हों, महावीर के धर्म के संबंध में कुछ जानते हों, उसका कोई मूल्य नहीं है। अगर महावीर जिसे धर्म कहते हैं, उस अर्थ में आप थोड़े बहुत धार्मिक हों तो उसका बहुत मूल्य है। धर्म जानकारी नहीं है, धर्म आमूल जीवन को परिवर्तित करना है। धर्म कुछ सीखना नहीं है, धर्म कुछ वस्त्रों की भांति ऊपर से ओढ़ लेना नहीं है, धर्म तो श्वासों की भांति, प्राणों की भांति, हृदय की धड़कन की भांति, जब समग्र जीवन में प्रविष्ट हो जाए, तो ही सार्थक होता है। तो दूसरी बात आपसे मैं यह कहूं कि अगर महावीर के सिद्धांत आपको मालूम हों तो उसका कोई बहुत मूल्य नहीं है। अगर महावीर की जीवन-चर्या आपको मालूम हो तो उसका मूल्य है। महावीर क्या कहते थे कि सृष्टि कैसे बनी, महावीर क्या कहते थे कि कितने पदार्थ हैं और कितने तत्व हैं, महावीर क्या कहते थे कि तर्क क्या है और सत्य क्या है, इसे जान लेने का कोई मूल्य नहीं है। मूल्य इस बात का है कि महावीर कैसे चलते थे, कैसे उठते थे, कैसे जीते थे। महावीर के तत्व-चिंतन का मूल्य नहीं है, महावीर की जीवन-चर्या का मूल्य है। जो जीवन-चर्या को साधेगा, वह महावीर के तत्व-ज्ञान को अपने आप उपलब्ध हो जाएगा। जो महावीर के तत्व-ज्ञान को सीख कर बैठा रहेगा, वह तत्व-ज्ञानी बन कर रह जाएगा, वह महावीर की जीवन-चर्या को उपलब्ध नहीं होगा। जीवन-चर्या मूल है, तत्व-ज्ञान गौण है। जीवन-चर्या का वृक्ष कोई लगाए, तो तत्व-ज्ञान की शाखाएं अपने आप फूट आती हैं। और जो तत्व-ज्ञान की शाखाओं को इकट्ठा करता रहे, उसके हाथ में लकड़ियों का बंडल तो बहुत इकट्ठा हो जाता है, भार तो बहुत हो जाता है, उसके जीवन में मुक्ति का प्रकाश उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए दूसरी बात आपसे यह कहूं।

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