________________
पद को और धन को छोड़ने की बात नहीं है, बात तो अहंता को छोड़ने की है। जो अहंता को छोड़ता है, वह अपने को छोड़ता है । और जो अहंता के अतिरिक्त कुछ भी छोड़ता हो, उसका छोड़ना सब फिजूल है; क्योंकि उस छोड़ने में भी उसकी अहंता फिर बलिष्ठ हो जाएगी। जो धन से प्रगाढ़ होती थी, वह धन के त्याग से प्रगाढ़ हो जाएगी। और जो अहंकार रास्तों पर चलता था कि मेरे पास इतना है, वही अहंकार फिर कल रास्तों पर चलेगा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। लेकिन मैं मैं उसमें उतना ही मौजूद होगा।
मैंने सुना है, एक बादशाह अपने बचपन में एक स्कूल में पढ़ता था । उसके साथ एक मित्र था। बाद में वह मित्र फकीर हो गया, नग्न फकीर हो गया । उसने सब छोड़ दिया। बादशाह भी युवा हुआ, गद्दी पर बैठा । उसने दूर-दूर के राज्य जीते और अपने साम्राज्य को विस्तीर्ण किया। राजधानी नवीन बनाई। वैभव के दूर-दूर तक उसकी पताकाएं फहरीं। और तब एक दिन उस पुराने मित्र फकीर का नगर में आगमन हुआ, राजधानी में आगमन हुआ। राजा ने कहा, मेरा मित्र आता है। सब त्याग करके आ रहा है, बहुत उसकी उपलब्धि है। हम उसका स्वागत करें और शाही सम्मान दें। उसने सारे नगर को सजवाया। और जिस संध्या उसका प्रवेश होना था, उस दिन सारे नगर में दीपावली मनवाई | रास्तों पर कालीन बिछवाए, जहां से वह गांव में प्रवेश करेगा। राजा खुद अपने दरबारियों को लेकर द्वार पर स्वागत करने गया।
यह सारा स्वागत का इंतजाम चलता था, कुछ लोगों ने उस फकीर को जाकर कहा, राजा अपना धन दिखलाना चाहता है । राजा अपनी संपत्ति और वैभव दिखलाना चाहता है । इसलिए सारी राजधानी को सजा रहा है, ताकि तुम्हें हतप्रभ कर सके, ताकि तुम्हें दिखा सके कि तुम क्या हो, अकिंचन दरिद्र ! नंगे भिखारी ! और राजा क्या है।
उस फकीर ने कहा, अगर वह दिखलाना चाहता है अपनी संपत्ति, अपना वैभव, तो हम भी उसे कुछ दिखला देंगे। सुनने वाले हैरान हुए । फकीर के पास दिखलाने को क्या था ! सिवाय नंगे शरीर के उसके पास कुछ भी नहीं था। लेकिन उसने कहा, हम भी दिखला देंगे !
और जिस दिन नगर में उसका प्रवेश हुआ, उन बहुमूल्य ईरानी कालीनों पर जब वह आकर चला तो लोग देख कर हैरान हुए। दिन तो अभी वर्षा के न थे, लेकिन उसके पैर घुटने तक कीचड़ से भरे थे! वह नंगा फकीर कीचड़ से भरा हुआ था और कीचड़ भरे पैरों से उन कीमती कालीनों पर चलता था। राजा को, सब को हुआ कि ये पैर इतने कीचड़ में कैसे भर गए! महल की सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त राजा से नहीं रहा गया और उसने पूछा कि मित्र, क्या मैं यह पूछूं कि ये पैर इतनी कीचड़ से कैसे भर गए हैं ?
उस फकीर ने कहा कि अगर तुम कालीन बिछा कर रास्तों पर अपना वैभव दिखलाना चाहते हो तो हम फकीर हैं, हम उस पर कीचड़ भरे पैर चल कर अपनी फकीरी दिखला देंगे! उस बादशाह ने कहा, मैं तो सोचता था कि हममें तुममें कोई फर्क पड़ गया होगा । लेकिन हम पुराने ही मित्र हैं और कोई फर्क नहीं पड़ा। तुम भी वहीं हो, जहां मैं हूं। तुमने छोड़ कर भी उसी दंभ को तृप्त किया है, जिसे मैं पाकर तृप्त कर रहा हूं।
इसलिए सवाल छोड़ने का नहीं है और पकड़ने का नहीं है। इसलिए सवाल स्वयं को देने का है, छोड़ने-पकड़ने का बिलकुल भी नहीं । संपत्ति को देने का नहीं है, स्वत्व को देने का है। 1
10