Book Title: Mahavir ya Mahavinash
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rajnish Foundation

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Page 13
________________ और तीसरी बात आपसे यह कहूं कि धर्म केवल उनके काम का है, जिन्हें प्यास हो। एक कुएं के पास हम खड़े हों। कुएं में जो पानी है, वह पानी केवल उन्हीं के लिए है, जिन्हें प्यास हो, अन्यथा पानी पानी नहीं है। पानी का होना पानी के भीतर नहीं है, आपकी प्यास में है। प्यास हो तो पानी पानी बन जाता है, प्यास न हो तो पानी कुछ भी नहीं रह जाता।। यह प्रकाश जल रहा है यहां। इस प्रकाश का होना प्रकाश में ही नहीं है, मेरी आंख में भी है। अगर आंख हो तो यह प्रकाश बन जाता है, आंख न हो तो सब अंधकार हो जाता है। धर्म के सत्य तो निरंतर उपलब्ध हैं, जैसे प्रकाश निरंतर उपलब्ध है। प्रश्न धर्म के सत्यों का नहीं, प्रश्न मेरे भीतर आंख के होने का है। पानी तो हमेशा उपलब्ध है—प्रश्न पानी का नहीं, मेरे भीतर प्यास के होने का है। तो इसके पहले कि मैं पानी की चर्चा करूं, यह जरूरी है कि मैं आपकी प्यास की चर्चा कर लूं। इसलिए तीसरी बात मैं आपसे यह कहना चाहता हूं, जहां तक मेरी समझ है, आपमें शायद ही धर्म की प्यास हो। क्योंकि जिनमें धर्म की प्यास हो, वे बहुत दिन बिना धार्मिक हुए नहीं रह सकते हैं। यह मैं सोच ही नहीं सकता कि कोई आदमी मुझसे कहे कि मैं वर्ष भर से प्यासा हूं और अभी पानी की तरफ गया नहीं! यह मैं सोच ही नहीं सकता, यह मेरी कल्पना में नहीं आता कि कोई आदमी वर्ष भर से प्यासा है और कुएं की तरफ गया नहीं! उसका न जाना इस बात का सबूत है, उसके भीतर प्यास न होगी। प्यास हो तो जाना ही पड़ेगा। प्यास हो तो चरण उस तरफ चले ही जाएंगे, प्यास हो तो सांसें खिंची चली जाएंगी, प्यास हो तो प्राण उसी तरफ भागेंगे। जहां प्यास है, वहां गति है। और जहां प्यास नहीं है, वहां कोई गति नहीं है। दुनिया को लोग कह रहे हैं कि अधार्मिक हो गई है। दुनिया अधार्मिक नहीं हो गई। केवल एक बात हो गई है कि वह जो प्यास है धर्म की तरफ जाने की, वह क्षीण हो गई है; उसका बोध विलीन हो गया है, उसका खयाल मिट गया है। खयाल चीजों को देख कर पैदा होते हैं। विचार और आकांक्षाएं बाहर घटनाएं घटें तो हमारे भीतर अनुप्रेरित होती हैं। जब महावीर जैसा व्यक्ति गांव से निकलता होगा और उनके आनंद को, और उनकी शांति को, और उनके प्रकाश को जब लाखों लोग देखते होंगे, तो स्वाभाविक था कि यह प्यास उनके भीतर पैदा होती हो कि ऐसी शांति और ऐसा आनंद हमें कैसे उपलब्ध हो जाए! मैं आपको कहूं कि महावीर या बुद्ध या उस तरह के व्यक्ति किसी को कोई उपदेश नहीं देते हैं। उनका उपदेश एक ही है। और वह बहुत गहरा है, और वह यह है कि जब वे आपके करीब से निकलते हैं, तो आपके भीतर एक प्यास को सरका कर जगा देते हैं। उनकी शिक्षाओं का उतना मूल्य नहीं है। इसलिए शिक्षाएं तो सब किताबों में लिखी हुई हैं, उनका आप पर कोई असर नहीं होता। इसलिए दनिया से जब भी कोई शिक्षक मिट जाता है. तो उसकी शिक्षाएं तो सब मौजूद होती हैं, उनका कोई अर्थ नहीं रह जाता। क्योंकि शिक्षक की खूबी शिक्षाओं में नहीं थी। शिक्षक की खूबी थी आपके भीतर प्यास को जगा देने में। कोई मुर्दा शिक्षा उसको नहीं जगा सकती है। केवल जीवित व्यक्ति ही उसे पैदा कर सकते हैं। ___कल्पना में भी अगर आप खयाल करें महावीर का, अगर कल्पना में भी विचार उठे कृष्ण का, क्राइस्ट का, तो आपके भीतर क्या होगा? .

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