Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit Author(s): Vasudevsharan Agarwal Publisher: Vasudevsharan Agarwal View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अचल अञ्जन आदि करते हैं (वन० १४२ । ६ ) । अग्निदेवने किन्हींका मत है कि ये महाराज दशरथके पिता ही थे ।) अङ्गिराको अपना प्रथम पुत्र स्वीकार किया (वन० (५) अजन्मा ( भीष्म० २८ । ६)। (६) सूर्य २१७ । ८-१८)। इनकी पत्नी सुभासे होनेवाली संतति- (वन०३।१६)। (७)शिव (आश्व०८।२१) बृहत्कीर्ति आदि पुत्र और भानुमती आदि कन्याओंका (८) ब्रह्मा (अनु० १५३ । १७)। (९) विष्णु वर्णन (वन० २१८।१-८)। इन्हें इन्द्रदेवतासे वर- (अनु. १४९ । ६९)। (१०) श्रीकृष्ण ( उद्योग की प्राप्ति हुई ( उद्योग० १८ । ५-७)। इन्होंने द्रोणा- ७०।८; शान्ति० ३४२ । ७४)। (११) बीज चार्यके पास आकर उनसे युद्ध बंद करनेको कहा था (शान्ति० ३३७ । ४)। (१२) छाग या बकरा (द्रोण० १९० । ३४-४०)। गौतमके पूछनेपर तीर्थोका (शान्ति० ३३७ । ३)। महत्त्व बताया ( अनु० २५ । ७-७१)। अगस्त्यजीके अजक-वृषपर्वा दानवका छोटा भाई, जो शाल्वरूपमें उत्पन्न समक्ष स्वयं कमलोंकी चोरी न करनेके विषयमें शपथ हुआ था ( आदि. ६५ । २४ तथा ६७ । १६)। करना ( अनु० ९४ । २०)। इनके द्वारा भीष्मजीसे अजगर-एक विशालकाय सर्प, जो पूर्वजन्ममें नहुष था और अनशनवतकी महिमाका वर्णन (अनु० १०६ । ११-१६)। अगस्त्यके शापसे सर्प होकर नीचे गिरा था। इसीने धर्मके रहस्यका वर्णन ( अनु० १२७ । ८) । समुद्रके भीमसेनको पकड़ा था (वन० १७८ । २८, १७९ । १०जलका पान (अनु. १५३ । ३)। अग्निको शाप २४) । उसका युधिष्ठिरके साथ संवाद (वन० १८० (अनु० १५३ । ८)। इन्होंने राजा अविक्षित्का यज्ञ तथा १८१ अ०)। कराया (आश्व० ४ । २२)। अजनाभ-एक पर्वतका नाम ( अनु० १६५ । ३२)। अचल-(१) कौरवपक्षका रथी वीर, जो गान्धारराज सुबलका अजमीढ़-(१) महाराज सुहोत्रके द्वारा ऐवाकीके गर्भसे पुत्र और शकुनिका भाई था ( उद्योग० १६८।१)। यह युधिष्ठिरका राजसूययज्ञ देखनेके लिये गया था । उत्पन्न, सोमवंशीय क्षत्रिय, इनके भाइयोंका नाम सुमीढ़ और पुरुमीढ़ था. इनके धूमिनी', 'नीली' तथा 'केशिनी' ३४।७)। इसका अपने भाई वृषकके साथ ही अर्जुनद्वारा वध हुआ (द्रोण. ३० । ११) । व्यासजीने एक रातके नामकी तीन रानियाँ थीं, जिनमें धूमिनीके गर्भसे (ऋक्ष', नीलीके गर्भसे दुष्यन्त और परमेष्ठी तथा केशिनीके 'जलु', लिये जिन मृतात्माओंको जीवित अवस्थामें बुलाया था, 'वजन' तथा 'रूपिण' नामके तीन पुत्र हुए थे । (आदि० उनमें यह भी था (आश्रम०३२।१२)। (२) स्कन्दका ९४ । ३०-३२ तथा अनु० ४ । २) । (२) एक एक पार्षद (शल्य०४५/७४) । (३) विष्णुसहस्रनाममें सोमवंशी क्षत्रिय राज', जो सोमवंशी विकुण्ठन तथा आया हुआ भगवान्का एक नाम (अनु० १४९।९२)। दशाहकुलकी कन्या सुदेवाके गर्भसे उत्पन्न हुए थे; इनकी अचला-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६। १४)। कैकेयी, गान्धारी, विशाला तथा ऋक्षा नामवाली चार अच्युत-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम (भीष्म०२५।२१)।। स्त्रियाँ थीं, जिनसे एक सौ चौबीस पुत्र हुए थे (आदि. (अपनी महिमा या स्वरूपसे अथवा धर्मसे कभी च्युत न ९५ । ३५-३७)। होनेके कारण भगवान्को 'अच्युत' कहते हैं । इस यौगिक अजवक्त्र-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ७५)। अर्थमें यह नाम युधिष्ठिर आदिके लिये भी विशेषरूपसे अजविन्द-सुवीरोंके वंशमें उत्पन्न एक कुलाङ्गार राजा प्रयुक्त हुआ है।) (उद्योग०७४ । १४)। अच्युतस्थल-वर्णसंकरजातीय अन्त्यजोंका वासस्थान एक - अजातशत्रु-युधिष्ठिर (भीष्म० ८५। १९ तथा सभा० प्राचीन ग्राम (वन० १२९ । ९)। १३ । ९)। अच्युतायु-कौरवपक्षीय एक वीर, श्रुतायुका भाई, अजेय-एक प्राचीन राजा (आदि० १ । २३४)। अच्युतायु और श्रुतायु-दोनोंका अर्जुनद्वारा वध हुआ (द्रोण० ९३ । ७-२४)। अजैकपात्-ग्यारह रुद्रोंमेंसे एक । ब्रह्माजीके पौत्र एवं स्थाणुअज-(१) इक्ष्वाकुवंशी नरेश, महाराज दशरथके पिता के पुत्र (आदि० ६६ । १-३)। ये सुवर्णके रक्षक हैं (उद्योग० ११४ । ४) ग्यारह रुद्रोंमें इनके नाम अनेक (वन० २७४ । ६)। (२) प्राचीन ऋषियोंका एक समुदाय, इन्हें स्वाध्यायद्वारा स्वर्गप्राप्ति हुई (शान्ति०२६। स्थलोंपर आये हैं। यथा-(शान्ति० २०८ । १९)। ७)। (३) महाराज जह्नके पुत्र, बलाकावके पिता अजोदर-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६०)। (शान्ति० ४९ । ३)। (४)एक राजा जिन्होंने जीवनमें अञ्जन-(१) एक पर्वतका नाम (सभा० ७८ । १५)। कभी मांस नहीं खाया (अनु०११५। ६६)। (किन्हीं- (२) सुप्रतीकके वंशमें उत्पन्न पातालवासी 'अञ्जन'नामक For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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