Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit Author(s): Vasudevsharan Agarwal Publisher: Vasudevsharan Agarwal View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नीषोम अङ्गिरा वाले एक ऋषि अङ्गार-(१ अग्नीषोम-(१) अग्नि और सोम नामक देवता, जो एक मनुके पुत्र अङ्ग, जो अन्तर्धामाके पिता थे (अनु० साथ रहकर हविष्य ग्रहण करते हैं (सभा० ७ । २१)। १४७ । २३)। (७) 'अङ्ग नामसे प्रसिद्ध अङ्गराज, (२) अग्नि और सोमके लिये दी जानेवाली आहुति जिनके साथ पृथ्वी स्पर्धा रखती थी (अनु० १५३ । २)। ( अनु० ९७ । १०)। (३) मनु (या भानु) नामक अङ्गद-(१) वानरराज वालीके पुत्र (वन० ८२।२८)। अग्निकी तीसरी पत्नी निशाके गर्भसे उत्पन्न अग्नि और वालकी पत्नी तारा इनकी माता थी (वन० २८० । सोम नामक दो पुत्र, ये दोनों अग्निस्वरूप हैं (वन. १८)। इनका सीताजीकी खोजसे लौटकर मधुवनके फल २२१ । १५)। खाना (वन० २८२ । २७-२८)। श्रीरामका इन्हें दूत अग्निप्वात्त-सात पितरोंमें एक (सभा० ११ । ४५-४६)। बनाकर रावणके दरबारमें भेजना (वन०२८३ । ५४)। अग्रणी-भानु या मनुकी तीसरी पत्नी निशाके गर्भसे उत्पन्न लङ्कामें जाकर रावणको श्रीरामका संदेश सुनाना (वन० पाँचवाँ पुत्र । मनुष्य जिनके द्वारा सब भूतोंको अन्नका २८४ । १०-१६) । अङ्गदका इन्द्रजितके साथ घोर युद्ध अग्रभाग अर्पण करते हैं, वे 'अग्रणी' नामक अग्नि हैं इनका (वन० २८८।१४-१९)। अङ्गदका साथियोंसहित (वन० २२१ । १५, २२)। आगे बढ़कर रावण और उसकी सेनापर आक्रमण (वन. अग्रयायी-राजा धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक, इसका दूसरा २९० । ३-४)। श्रीरामके द्वारा किष्किन्धाके युवराजपदपर नाम अनुयायी' भी है (आदि० ११६ । ११)। इनका अभिषेक (वन० २९११५९)। (२)कौरवपक्षका अग्रह-चातुर्मास्य यज्ञोंमें नित्यविहित आग्नेय आदि आठ एक वीर योद्धा, जो बारहवें दिनके युद्ध में उत्तमौजासे लड़ा हविष्योंके उद्भवस्थान अग्रह' नामक अग्नि, ये भानु या था (द्रोण. २५ । ३८-३९)। (३) एक आभूषणमनुकी ‘सुप्रजा' और 'बृहद्भासा' नामक पत्नियोंके गर्भसे उत्पन्न होनेवाले छः पुत्रों से पाँचवें हैं (वन० २२१ । का नाम, जो बाँहमें पहना जाता है। ५-१४)। __ अङ्गमलज-भारतवर्षका एक जनपद (भीष्म० ९ । ५०)। अघमर्षण-वानप्रस्थ धर्मका पालन करनेवाले एक ऋषि जनपद (भीष्म० ९।६०)।(२) (शान्ति० २४४ । १६)। एक प्राचीन राजा, जो मान्धातासे पराजित हुआ था अङ्ग-(१) एक प्राचीन जनपदका नाम । दुर्योधनने कर्णको । (शान्ति० २९ । ८८)। अङ्गदेशके राज्यपर अभिषिक्त किया (आदि. १३५। ३८)। (बिहारप्रान्तमें भागलपुर और मुंगेर जिलेके आस- अङ्गारक-(१) सौवीर देशका एक राजकुमार, जो पासका प्रदेश, जिसकी राजधानी चम्पापुरी थी। कहीं-कहीं जयद्रथका अनुगामी था (वन० २६५। १०)।(२) इसका विस्तार वैद्यनाथधामसे लेकर भुवनेश्वरतक लिखा मङ्गल' नामक ग्रह, जो ब्रह्माजीकी सभामें नित्य उपस्थित है-हिन्दी शब्दसागर)। कर्ण यहींका राजा बनाया गया था। होते हैं (सभा० ११ । २९)। (३ तीर्थयात्राके अवसरपर अर्जुनका यहाँ आगमन हुआ था नामोंमेंसे एक (वन० ३ । १०)। ( आदि० २१४ । ९-१०)। (२) अङ्गदेशीय क्षत्रिय अङ्गारपर्ण-(१) एक गन्धर्व, जो अर्जुनसे पराजित होकर अथवा प्रजावर्ग । अङ्गदेशवासियोंने राजसूययज्ञके अवसर- उनका मित्र बन गया। इसकी पत्नीका नाम 'कुम्भीनसी' था, पर युधिष्ठिरको भेंट अर्पण किया था (सभा० ५२ । (आदि० १६९१०)। (देखिये चित्ररथ) (२) गङ्गातटवर्ती १६) । अङ्गदेशीय योद्धा श्रीकृष्णद्वारा पराजित हुए एक वन, जो गन्धर्वराज अङ्गारपर्णके अधिकारमें था। थे (द्रोण० ११ । १५ ) । अङ्गदेशवासियोंपर परशुरामजीकी विजय (द्रोण०७०। १२)। अङ्गों- अङ्गावह-एक वृष्णिवंशी महारथी वीर, जो युधिष्ठिरके पर कर्णकी विजय ( कर्ण० ८ । राजसूययज्ञमें श्रीबलरामजी आदिके साथ आया था सोलहवें दिनके युद्धर्म अर्जुनपर चाढ़ई की थी (सभा० ३४ । १६)। ( कर्ण० १७ । १२ ) । अङ्गदेशीय वीरोका अडिरा-ब्रह्माजीके छः मानस पुत्रोंमेंसे एक ( आदि. धृष्टद्युम्न एवं पाञ्चाल-सेनापर आक्रमण (कर्ण० २२ । ६५।१०)ये ब्रह्माजीके सभासद् है ( सभा० ।।। २)। (३) अङ्ग-देशनिवासी म्लेच्छोंका एक सरदार, १९)। इन्हींके पुत्र बृहस्पतिका देवताओंने पौरोहित्यके जो महाभारत-युद्धके बारहवें दिन भीमसेनद्वारा हाथीसहित पदपर वरण किया था (आदि. ७६ । ६) । इनकी मारा गया था (द्रोण. २६ । १४-१७) । (४) ब्रह्माजीके वीर्य एवं अङ्गारसे उत्पत्तिका वर्णन (अनु० अङ्गराज (म्लेच्छ-सरदार), यह भीमसेनद्वारा मारे गये 'अङ्ग' (अङ्गाधिपति म्लेच्छ ) से भिन्न था; यह सोलहवें ८५ । १०५-१०६)। इनसे बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त दिनके युद्ध में नकुलद्वारा मारा गया (कर्ण०२२ । १८)। नामक तीन पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई (आदि. ६६ । ५)। (५)अङ्गराज बृहद्रथ, जिनकी कथा षोडश राजकीयो- इन्होंने सूर्यदेवकी रक्षा की है (वन० ९२ । ६)। ये पाख्यानमें आयी है (शान्ति. २९ । ३१)। (६) अलकनन्दा नामक गङ्गाके तटपर नित्य स्वाध्याय, जप कणका विजय कण०८।१९) । अङदेशीय For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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