Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 134
________________ भुजगारबंधे अंतरकालाणुगमो ११३ जह० एग०, उक्क० अंतो० । अट्टक० भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० पुव्वकोडी देसू० । अवढि०-अवत्त० णाणावरणभंगो। इत्थि० भुज०-अप्पद०-अवढि० मिच्छ०भंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक० वेछावढि० देसू० । पुरिस० भुज अप्पद०अवढि० णाणावरणभंगो। अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० वेछावट्टि० सादिः। णस० पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अणादें. भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० वेछावद्विसाग० सादि० तिण्णिपलि० देसू० । अवट्ठि० णाणाभंगो। अवत्त० ज० अंतो०, उक्क० बेछावट्ठि० सादि० तिणिपलिदो० देसू०। तिण्णिआउ०-वेउन्वियछक्क० तिण्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अणंतका० । तिरिक्खाउ० भुज०-अप्पद० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० सागरोवमसदपुधत्तं । अवट्टि. णाणाभंगो। तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०-उज्जो० भुज-अप्पद० जह० एग०, उक० तेवढिसागरोवमसदं० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० असंखेंजा लोगा । णवरि उज्जो० अवत्त० [ जह० ] अंतो०, [उक्क०] तेवढिसागरोवमसदं। अवढि० णाणाभंगो । मणुस०-मणुसाणु०-उच्चा० भुज०-अप्पद०-अवढि० जह० एग०, उक्क० असंखेंजा कीर्ति और अयश कीर्तिके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। आठ कषायों के भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। अवस्थित और अवक्तव्यपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। स्त्रीवेदके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है। पुरुषवेदके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है । अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है। तीन आयु और वैक्रियिकषटकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त कालप्रमाण है। तिर्यञ्चायुके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और तीनोंका उत्कृष्ट अन्तर सौ सागरपृथक्त्वप्रमाण है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । तिर्यञ्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ त्रेसठ सागरप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि उद्योतके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ त्रेसठ सागरप्रमाण है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगार, अल्पतर औरअवस्थितपदकाजघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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