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भुजगारबंधे फोसणाणुगमो
. १६७ १८४. ओरालि०मि०-आहार-आहारमि०-अवगदवे०-मणपज०-संजद-सामाइ०छेदो०-परिहार० मुहुमसं० खेत्तभंगो।
१८५. वेउव्वियका० पंचणा०-णवदंसणा०-सोलसक०-भय-दुगुं० [णवुस-] तिरिक्ख०-ओरालि०-तेजा०-क०-हुंड०-वण्ण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-बादर-पजत्त-पत्ते०दुभग-अणादें-णिमि०-णीचा०-पंचंत० तिण्णिपदा अट्ट-तेरह । अवत्त० अढचों। सादासाद०-चदुणोक० उजो०-थिरादितिण्णियुग सव्वपदा अट्ठ-तेरह। मिच्छतिण्णिपदा अट्ठ-तेरह ० । अवत्त० अट्ठ-बारह । इत्थि०-पुरिस०-पंचिंदि०-पंचसंठा०-ओरालि अंगो०छस्संघ०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदें० तिण्णिपदा अट्ठ-बारह । अवत्त० अट्ठचों । दोआउ-मणुस०-मणुसाणु०-आदाव०-उच्चा० सव्वपदा अट्टचों । एइंदि०-थावर० स्पर्शन राजुओं में नहीं प्राप्त होता, यह कहा है। इसी प्रकार तीर्थकर प्रकृतिके तीन पदवाले जीवोंका स्पर्शन भी यहाँ त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण सम्भव नहीं है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए यहाँ इसके सब पदवाले जीवों का स्पर्शन राजुओं में नहीं प्राप्त होता, यह सूचना की है। इसी प्रकार अन्य जो विशेषता सम्भव हो वह घटित कर लेनी चाहिए।
१८४. औदारिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें क्षेत्रके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ-इन मार्गणाओंमें जिन प्रकृतियोंके जिन पदोंकी अपेक्षा जो क्षेत्र कहा है, सामान्यसे वह यहाँ भी बन जाता है, इसलिए इनमें क्षेत्रके समान स्पर्शन जाननेकी सूचना की है।
१८५. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्ण, चतुष्क, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी,अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने प्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय, उद्योत और स्थिर आदि तीन युगलके सब पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालोके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने सनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और आदेयके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंने बसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। एकेन्द्रियजाति और स्थावरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने
१ ता०प्रतौ 'थिरादितिण्णिउ (यु) सव्वपदा' इति पाठः। २ ता०प्रतौ 'अठतेर अहबारह ' इति पाठः।
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