Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जीवसमुदाहारे जोगट्टाणपरूवणा
३०७ सुहमस्स पजत्तयस्स जह० जोगो असंखेंजगुणो'। बादरेइंदियपञ्जत्तयस्स जह० जोगो असंखेंजगुणो'। सुहुम० अपञ्जत्तयस्स उकस्सगो जोगो असंखेंजगुणो। बादर० अपज्ज० उक्क० जोगो असंखेंजगु० । सुहुम० पञ्जत्त० उक्क० जोगो असंखेंजगु० । बादर० पञ्जत्त० उक्क० जोगो असंखेंजगु० । वेइंदि०पजत्त० जह० जोगो असंखेंजगु० । एवं तेइंदि०-चदुरिंदि०-असण्णिपंचिंदि०-सण्णिपंचिंदि० पजत्त० जह० जोगो असंखजगुणो । बीइंदि०अपज० उक्क० जोगो असंखेंजगुणो। एवं तेइंदि०-चदुरिंदि०-असण्णिपंचिंदि०-सण्णिपंचिंदि०अपज० उक्क० जोगो असं०गुणो। बीइंदि०पज्जत्त० उक० जोगो असं०गुणो । एवं तीइंदि०-चदुरिंदि०-असण्णिपंचिं०-सण्णिपंचिंदि०पज्जत्त० उक्क० जोगो असंखेंगुणो। एवमेककस्स जीवस्स जोगगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो।
एवं जोगट्ठाणपरूवणा समत्ता ।
पदेसबंधट्टाणपरूवणा ३४१. पदेसबंधट्ठाणपरूवणदाए सव्वत्थोवा सुहुमस्स अपज्जत्तयस्स जहण्णयं पदेसग्गं । वादर०अपज० जह० पदेसग्गं असंखेंजगुणं। एवं बेइंदि०-तेइंदि०-चदुरिंदि०असण्णिपंचिंदि०-सण्णिपंचिंदि अपज्जत्त० जह० पदेसग्गं असंखेंजगुणं । सुहुमस्स असंख्यातगुणा है । असंज्ञी पश्चेन्द्रियके जघन्य योगस्थानसे सूक्ष्म पर्याप्तका जघन्य योग असंख्यातगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तका जघन्य योग असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म अपर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। उससे बादर अपर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म पर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। उससे बादर पर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तका जघन्य योग असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार क्रमसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, असंज्ञी पश्चेन्द्रिय पर्याप्त और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवका जघन्य योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। उससे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार क्रमसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त जीवका उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। संज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तके उत्कृष्ट योगसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार क्रमसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त और संज्ञी पञ्चन्द्रिय पर्याप्त जीवका उत्कृष्ट योग उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार एक-एक जीवका उत्तरोत्तर योग गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
इस प्रकार योगस्थानप्ररूपणा समाप्त हुई।
प्रदेशबन्धस्थानप्ररूपणा ३४१. प्रदेशबन्धस्थानप्ररूपणाकी अपेक्षा सूक्ष्म अपर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र सबसे स्तोक है। उससे बादर अपर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगणा है। इसी प्रकार क्रमसे अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय
१. ता०प्रतौ 'जोग० असंखेजगुणं' इति पाठः । २. ता०प्रतौ -पज्जत्त० जोगो० जह० असंखेज्जगु०' इति पाठः। ३. ता०प्रतौ० 'असण्णिपंचिंदि० । सण्णिपंचिदि०' इति पाठः।
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