Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 329
________________ ३०८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे पजत्त० जह० पदेसग्गं असंखेंजगुणं । एवं बादर०पजत्त० । सुहुम अपज्जत्त. उक्क० पदेसग्गं असंखेंगुणं । बादर०अपज० उक्क० पदे० असं०गुणं । सुहुम०पज्ज० उक्क० पदे० असं०गुणं। बादर०पज्जत्त० उक० पदे० असं०गुणं । बेइंदि०पज्जत्त० जह. पदे० असं०गुणं । एवं तीइंदि०-चदुरिंदि०-असण्णिपंचिंदि०-सण्णिपंचिंदिपज्जत्त० जह० पदे० असं०गुणं । बीइंदि०अपज्ज. उक्क० पदे. असं०गुणं । एवं तेइंदि०चदुरिंदि० - असण्णिपंचिंदि० - सण्णिपंचिंदि०अपज्ज. उक्क० पदे० असंखें गुणं । बीइंदिपज्जत्त० उक्क० पदे. असं॰गुणं । एवं तेइंदि०-चदुरिंदि०-असण्णिपंचिंदि०सण्णिपंचिंदिपज्जत्त० उक्क० पदे० असं०गु० । एवमॅक्कॅकस्स जीवस्स पदेसगुणगारों पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एवं पदेसबंधट्ठाणपरूवणा समत्ता। अप्पाबहुगं ३४२. अप्पाबहुगं तिविहं-जहण्णयं उक्कस्सयं जहण्णुक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं । दुवि०-ओघे० आदे। ओपेण तिण्णिआउगाणं वेउब्बियछक्क० तित्थयरस्स य सव्वत्थोवा उक्कस्सपदेसबंधगा जीवा। अणुक्कस्सपदेसबंधगा जीवा असं गुणा । आहारदुगस्स सव्वत्थोवा उकस्सपदेसबंधगा जीवा। अणुक्कस्सपदेसबंधगा जीवा अपर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। आगे सूक्ष्म पर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे बादर पर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म अपर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे बादर अपर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म पर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे बादर पर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार क्रमसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, असंज्ञी पञ्चन्द्रिय पर्याप्त और संज्ञी पञ्चन्द्रिय पर्याप्तका जघन्य प्रदेशाग्र उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा है। आगे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार आगे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, असंज्ञी पश्चन्द्रिय अपर्याप्त और संज्ञी पश्चन्द्रिय अपर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है। आगे द्वीन्द्रिय पर्याप्तका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार आगे क्रमसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, असंज्ञी पञ्चन्द्रिय पर्याप्त और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त जीवका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । इसी प्रकार उत्तरोत्तर एक-एकका प्रदेश गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इस प्रकार प्रदेशबन्धस्थान प्ररूपणा समाप्त हुई । अल्पबहुत्व ३४२. अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है-जघन्य, उत्कृष्ट और जघन्योत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे तीन आयु, वैक्रियिकषट्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अनुकृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जोव असंख्यातगुणे हैं। आहारकद्विकके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे १. ता०प्रतौ 'बीइं उ (अ) प०' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'एवमेक्केकस्स पदेसगुणगारो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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