Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 333
________________ ३१२ महाबंधे पदेसबंधाहियारे समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुम्सर-आदें०-उच्चा० - पंचंतरा० सव्वत्थोवा जह० पदे०५० जीवा । उक्क०पदे०७० जीवा असंखेंजगुणा। अजह०मणु० पदे०ब जीवा असंखेंजगुणा । सेसाणं पगदीणं सव्वत्थोवा उक्क० पदेब जीवा । जह०पदे०२० जीवा असं० गु० । अजह०मणु० पदे०५० जीवा असंगु । पंचिंदियतिरिक्खअपजत्त० . सव्वपगदीणं सम्वत्थोवा उक्क० पदेब जीवा । जह० पदेब जीवा असंखेंजगु० । अज०मणु०पदे०पं. जीवा असं०गु० । एवं एइंदिय-बादरेइंदिय-विगलिंदियाणं तिण्णिपदा । पंचिंदियतसअपज० पंचकायाणं च ओघं पदा । तेसिं बादराणं ओघं पदा । बादरेइंदियपजत्ता सव्वसुहुमपंचकायाणं बादरपज्जत्तापजत्ताणं तेसिं सव्वसुहुमाणं सव्वत्थोवा जह०पदे०व जीवा । उक०पदे०ब जीवा असं० गुणा । अजह०मणु०पदे०७० जीवा असं०गु० । किं कारणं जह०पदे० जीवा थोवा ? सगरासिस्स असंखेजदिभागो जहण्णयं करेदि त्ति । मणुसाउ० ओघो। ३४७. मणुसेसु दोआउ-बेउब्बियछक्कं आहारदुगं तित्थ० ओघं आहारसरीरभंगो । सेसाणं सव्वत्थोवा उक्क० पदे०२० जीवा । जह० पदे०ब० जी० असं०गु० । अजह०मणु०पदे०२० जीवा असं०गु० । मणुसपजत्त-मणुसिणीसु सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा देवगतिचतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुण है। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदशाक बन्धक जीव असंख्यातगुण है। पञ्चनि व असंख्यातगुणे हैं । पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुण हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवोंमें तीन पदोंका अल्पबहुत्व जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, त्रस अपर्याप्त और पाँच स्थावरकायिकोंमें ओधके अनुसार पदोंका अल्पबहुत्व है। उनके बादरोंमें ओघके अनुसार पदोंका अल्पबहुत्व है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, सब सूक्ष्म पाँच स्थावरकायिक, बादर पर्याप्त और बादर अपर्याप्त तथा उनके सब सूक्ष्म जीवों में जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं, इसका क्या कारण है ? क्योंकि अपनी राशिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव जघन्य प्रदेशोंका बन्ध करते हैं । मनुष्यायुका भङ्ग ओघके समान है। ३४७. मनुष्योंमें दो आयु, वैक्रियिकषट्क, आहारद्विक और तीर्थङ्करप्रकृतिका भङ्ग ओघसे आहारकशरीरके समान है। शेष प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें सब प्रकृतियोंके जवन्य प्रदेशोंके बन्धक १. आ प्रती 'जह०पदे०२० जीवा असंखेजगुः । एवं' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'पद ( दा ) बादर- एइंदियपज्जत्ता' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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