Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 250
________________ बंधे समुत्ति २२६ २६८. मदि- सुद० धुविगाणं अत्थि चत्तारिवड्डी चत्तारिहाणी अवट्ठिदबंधगा य । सेसाणं परियत्तमाणिगाणं अत्थि चत्तारिवड्डी चत्तारिहाणी अवद्विद० अवत्तव्वबंधगा य । एवं विभंग० - अब्भव०-मिच्छादि० - असण्णि त्ति । णवरि मदि-सुद० विभंग ०भंगो । मिच्छा० सादभंगो' । २६६. आभिणि-सुद-अधि० चदुदंस० अट्ठक० अत्थि पंचवड्डी पंचहाणी अव० अत्तव्वबंधगाय । सेसाणं अत्थि चत्तारिवड्डी चत्तारिहाणी अवट्ठिद० अवत्तव्यबंधगा य । एवं ओधिदंस०-सम्मा० खइग० - वेदग०-उवसम० त्ति । णवरि वेदगे धुविगाणं अवत्तव्वं णत्थि । छदंसणा ० णाणा० भंगो । २७०. मणपज सव्वपगदीणं अस्थि चत्तारिवड्डी चत्तारिहाणी अवट्ठिद ० अवतव्वबंधगा य । चदुदंसणा० अत्थि पंचवड्डी पंचहाणी अवट्ठिद० अवत्तव्वबंधगा य । एवं संजद - सामा६० - छेदो०- परिहार० सुहुम संप० - संजदासंजद० - सासण० । सम्मामि० धुविगाणं अत्थि चत्तारिवड्डि-हाणी अवद्वाणं । सेसाणं अस्थि चत्तारिवड्डी चत्तारिहाणी अवदि० अवत्तव्वबंधगा य । एवं समुत्तिणा समता २६८. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवांमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीव हैं। शेष परावर्तमान प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं । इस प्रकार विभङ्गज्ञानी, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवों में विभङ्गज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । तथा मिथ्यात्वका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । २६६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में चार दर्शनावरण और आठ कषायकी पाँच वृद्धि, पाँच हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वेदकसम्यग्दृष्टि जीवों में ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका अवक्तव्यपद नहीं है । तथा छह दर्शनावरणका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है | २७०. मन:पर्ययज्ञानी जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं। चार दर्शनावरणकी पाँच वृद्धि, पाँच हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं । इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, संयतासंयत और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवों में जानना चाहिए । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीव हैं । इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई । १. आ० प्रतौ 'असादभंगो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394