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महाबंधे पदेसबंधाहियारे
बादर-पञ्जत्त - पत्ते ० - णिमि० - पंचंत० सव्वत्थोवा अवत्त० । अवट्ठि० असंखैजगुणा । सेसाणं पदाणं ओघं तित्थयरभंगो । सेसपगदीणं ओघभंगो । वचिजो० - असच्चमोसवचि०चक्खुदं० पंचिदियभंगो । ओरालियमिस्स० तिरिक्खोघं । णवरि अनंतभागवड्डिहाणि० णत्थि ।
३२८. वेउव्वियका० देवोघं । वेउव्वियमिस्सका० सव्वत्थोवा अवत्त० । असंखेखगुणवडिवं. असंखेजगुण० । एवं कम्मइ० - अणाहार० । णवरि मिच्छ० सव्वत्थोवा अवत्त० । असंखेज्ञगुणवडिवं० अनंतगु० । आहारकायजोगी० । सव्वट्टभंगो० | आहारमिस्स ० वेडव्वियमिस्स ० भंगो ।
३२६. इत्थवेद० पंचणा०- पंचंत० । सव्वत्थोवा' अवडि० । उवरि ओघं । थीणगि ०३ - मिच्छ० - अणंताणु०४ - ओरालि० - तेजा० क० वण्ण ०४- अगु० - उप० - णिमि० सव्वत्थोवा अवत० । अवट्टि० असंखेज्जगुणा । उवरि ओघं । णिद्दा- पयला ० - अट्ठक०भय-दु० सव्वत्थोवा अवत्त० । अनंतभागवड्डि-हाणि० दो वि तुल्ला असंखेजगुणा । अवदि० असंखेज गु० । उवरि ओघं । णवरि चदुसंज० सव्वत्थोवा अनंतभागवड्डि
और पाँच अन्तरायके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। शेष पदोंका भङ्ग ओघसे तीर्थकर प्रकृतिके समान है । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । वचनयोगी, असत्यमृषावचनयोगी और चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें पञ्चेन्द्रियोंके समान भङ्ग है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सामान्य तिर्यश्नोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि नहीं है ।
३२८. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सामान्य देवोंके समान भङ्ग है । वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें अवक्तव्यपदके बन्धक जीब सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यातगुणवृद्धि के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार कार्मगकाययोगी और अनाहारक जीवों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यात - गुणवृद्धिके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। आहारककाययोगी जीवों में सर्वार्थसिद्धिके देवोंके समान भङ्ग है | आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान भङ्ग है ।
३२६. स्त्रीवेदी जीवों में पाँच ज्ञानावरण और पाँच अन्तरायके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। आगे ओघके समान भङ्ग है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व अनन्तानुबंधी चतुष्क, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित पदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । आगे ओघके समान भङ्ग है । निद्रा, प्रचला, आठ कषाय, भय और जुगुप्साके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानिके बन्धक जीव दोनों ही तुल्य होकर असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। आगे ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि चार संज्वलनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्त
१. ता०प्रतौ 'इत्थवेदभंगो पंचणा० पंचत० । सव्वत्थोवा' आ०प्रतौ इत्थवेदभंगो पंचणा० पंचंत सव्वत्थोवा' इति वाठः ।
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