Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 323
________________ महाबंधे पदेसबंधाहियारे ताव सव्वाणि जोगट्ठाणाणि लद्धाणि । तदो सत्तविधबंधगस्स उक्स्सगादो अट्ठविधबंधगस्स उक्कस्सगं सुद्धं । सुद्धिसेसो यावदियो भागो अधिद्वित्तो जोगट्ठाणं तदो सत्तविधवंधगेण विसेसो लद्धो । एवं सत्तविधबंधगादो छविधबंधगं उवणीदा । एदेणं कारणेण आभिणिबोधियणाणावरणीयस्स असंखेंजाणि पदेसबंधट्ठाणाणि जोगट्ठाणेहिंतो संखेंजभागुत्तराणि । एवं सुद०-ओधि०-मणपज-केवलणा०-पंचंतराइयाणं च एसेव भंगो । थीणगि०३ असंखेंजाणि पदेसबंधट्ठाणाणि जोगट्ठाणेहितो विसेसाधियाणि । विसेसो पुण संखेंजदिभागो । णिद्दा-पयलाणं असंखेंजाणि पदेसबंधट्ठाणाणि । जोगट्ठाणेहिंतो दुगुणाणि संखेंजदिभागुत्तराणि । चदुदंस० असंखेंजाणि पदेसवंधट्ठाणाणि जोगट्ठाणेहितो तिगुणाणि संखेंजदिभागुत्तराणि । कधं तिगुणाणि संखेजदिभागुत्तराणि ? असण्णिघोलमाणगं जहण्णयं जोगट्ठाणं आदि कादूण सव्वाणि जोगट्ठाणाणि अट्ठविधबंधगेण लद्धाणि । तदो सत्तविधबंधगेण विसेसो लद्धो। एत्तियाणि चेव पदेसबंधट्ठाणाणि सम्मादिविणा वि लद्धाणि । पुणो वि णिद्दा-पयलाणं बंधगदो च्छेदो एत्तियाणि चेव पदेसबंधट्ठाणाणि लद्धाणि । एदेण कारणेण चदुदंसणावरणीय स्स असंखेंजाणि पदेसबंधट्ठाणाणि जोगट्ठाणेहितो तिगुणाणि संखेंजदिभागुत्तराणि । सादासाद०-मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्थि०-णQस० चदुण्णं आउ० सव्वासिं णामपगदीणं जीवने सब योगस्थान प्राप्त किये हैं। उनसे सात प्रकारके बन्धक जीवके उत्कृष्टमेंसे आठ प्रकारके बन्धक जीवका उत्कृष्ट घटा दें। घटानेपर योगस्थानका जितना भाग शेष रहे,उसकी अपेच सात प्रकारके बन्धक जीवने विशेष प्राप्त किया है। इसी प्रकार सात प्रकारके बन्धक जीवसे छह प्रकारके बन्धक जीवने विशेष अधिक प्राप्त किया है। इस कारणसे आभिनिबोधिकज्ञानावरणके असंख्यात प्रदेशबन्धस्थान हैं जो योगस्थानोंसे संख्यातवें भाग अधिक हैं। इसी प्रकार श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण और पाँच अन्तरायोंके विषयमें यही भङ्ग जानना चाहिए। स्त्यानगृद्धित्रिकके असंख्यात प्रदेशबन्धस्थान हैं जो योगस्थानोंसे विशेष अधिक हैं । विशेषका प्रमाण संख्यातवें भागप्रमाण है। निद्रा और प्रचलाके असंख्यात प्रदेशबन्धस्थान हैं जो योगस्थानोंसे संख्यातवाँ भाग अधिक दूने हैं। चार दर्शनावरणोंके असंख्यात प्रदेशबन्धस्थान हैं जो योगस्थानोंसे संख्यातवाँ भाग अधिक तिगुणे हैं। संख्यातवाँ भाग अधिक तिगुणे कैसे हैं ? असंज्ञीके घोलमान जघन्य योगस्थानसे लेकर सब योगस्थान आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाले जीवने प्राप्त किये हैं। उनसे सात प्रकारके कर्मों के बन्धक जीवने विशेष प्राप्त किये हैं। तथा इतने ही प्रदेशबन्धस्थान सम्यग्दृष्टि जीवने प्राप्त किये हैं। तथा फिर भी निद्रा और प्रचलाका बन्धसे छेद होनेके बाद इतने ही प्रदेशबन्धस्थान प्राप्त किये हैं। इस कारणसे चार दर्शनावरणके असंख्यात प्रदेशबन्धस्थान हैं जो योगस्थानोंसे संख्यातवाँ भाग अधिक तिगुणे हैं। सातावेदनोय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार आयु, नामकर्मकी सब प्रकृतियाँ, नीचगोत्र और उच्चगोत्र इनका स्त्यानगृद्धि १. आ०प्रतौ 'अवहिदबंधगस्स' इति पाठः। २. ता०प्रतौ 'उवणिए० एदेण' इति पाठः । ३. ता०प्रतौ 'कथं (धं ) तिगुणाणि' इति पाठः। ४. ता०प्रती 'यत्तियाणि' इति पाठः। ५. ता०प्रतौ 'बंधदोच्छेदो यत्तियाणि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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