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वड्डिबंधे खेत्तं
२८२ ३१७. बादरेइंदिय-पजत्तापज्जत्ता० धुविगाणं चत्तारिवाड्डि-हाणि-अवढि० सव्वलोगे। तसपगदीणं चत्तारिवड्डि - हाणि-अवढि०-अवत्त० लोगस्स संखेंजदिभागे। मणुसाउ० ओघं। तिरिक्खाउ० सव्वपदा लोगस्स संखेंज । सेसाणं सबपगदीणं सव्वपदा सव्वलोगे । णवरि तिरिक्ख०३ अवत्त० लोगस्स असंखेंज० । मणुसगदितिगं सव्वपदा लोगस्स असंखें । एदेण बीजेण याव अणाहारग त्ति णेदव्यं ।
एवं खेत्तं समत्तं ।
अतः उनमें ओघके समान जाननेको सूचना की है। मात्र औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें देवगतिपञ्चकका एक ही पद होता है और वह भी सम्यग्दृष्टियोंके ही, इसलिए इनके उक्त पदवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है।
३१७. बादर एकेन्द्रिय तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। त्रसप्रकृतियोंकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । मनुष्यायुका भङ्ग ओघके समान है। तिर्यञ्चायुके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगतित्रिकके अवक्तव्यपदके वन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा मनुष्यगतित्रिकके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इस बीजपदके अनुसार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए।
विशेषार्थ-बादर एकेन्द्रिय आदि तीनों प्रकारके जीव मारणान्तिक समुद्धातके समय भी ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके सब पद करते हैं, इसलिए इनके सब पदवाले जीवोंका क्षेत्र सर्व लोक कहा है। परन्तु एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्धात करते समय त्रसप्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके सब पदवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है। ओघसे मनुष्यायुके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण सिद्ध करके बतला आये हैं, उसी प्रकार यहाँ भी बन जाता है। इसलिए यहाँ ओघके समान जाननेकी सूचना की है। इन बादर एकेन्द्रिय आदि जीवोंका स्वस्थान क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए यहाँ तिर्यञ्चायुके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र उक्तप्रमाण कहा है। इन जीवोंके शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंका बन्ध मारणान्तिक समुद्धातके समय भी सम्भव है, इसलिए इनके सब पदवालोंका क्षेत्र सर्वलोक कहा है। मात्र तिर्यञ्चगतित्रिकका अवक्तव्यपद बादर वायुकायिक जीव नहीं करते और इन जीवाको छोड़कर अन्य बादर जीवाका स्वस्थान क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण नहीं है, इसलिए यहाँ इन प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा अग्निकायिक और वायुकायिक जीव मनुष्यगतित्रिकका बन्ध नहीं करते, इसलिए इनके सब पदोंके बन्धक जीवोंका क्षेत्र भी लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। अनाहारक मार्गणा तक इस बीज पदको समझकर क्षेत्र प्राप्त करना सम्भव है, इसलिए उसे इस कथनको बीज मानकर जाननेकी सूचना की है।
इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ।
१. ता० आप्रत्योः 'लोगस्स असंखेजदिभागो' इति पाटः। २. ता०प्रतौ -तिगं सव्वलोग असंखे०' इति पाठः। ३. ता०प्रतौ एवं खेत्तं समत्तं ।' इति पाठो नास्ति ।
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