Book Title: Mahabandho Part 7
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 312
________________ वडिबंधे अंतरं २६१ अंतरं ___३२१. अंतराणुगमेण दुवि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण पंचणा० चत्तारिवड्डि-हाणि-अवहिबंधगंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णत्थि अंतरं । अवत्त० जह० एग०, उक्क० वासपुधत्तं । एवं सव्वाणं धुविगाणं । णवरि थीणगि०३-मिच्छ०अणताणु०४ अवत्त० जह० एग०, उक्क० सत्त रादिदियाणि। अपञ्चक्खाण०४ जह० एग०, उक्क० चोट्स रादिदियाणि । पञ्चक्खाण०४ जह० एग०, उक्क० पण्णारस रादिदियाणि । एसिं पगदीणं अणंतभागवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें। सादादीणं तिरिक्खाउगस्स य चत्तारिवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० णत्थि अंतरं। एवं सव्वासिं परियत्तमाणियाणं । णिरय-मणुस-देवाऊणं तिण्णिवड्डि-हाणिअवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें । असंखेंजगुणवड्डि-हाणि-अवत्त० जह० एग०, उक्क० चदुवीसं मुहुत्तं । वेउव्वियछ०-आहारदु० असंखेंजगुणवड्डि-हाणि० णत्थि अंतरं । तिण्णिवड्डि-हाणि-अवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें। अवत्त. ओघके अनुसार यहाँ भी बन जाता है, इसलिए इस विषयमें ओघके समान जाननेकी सूचना की है। शेष कथन स्पष्ट ही है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ। अन्तर ३२१. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरणकी चार वृद्धि, चार हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका कितना अन्तर है ? अन्तर नहीं है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार सब ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि स्त्यानगुद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी चतुष्कके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर सात दिन-रात है। अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौदह दिन-रात है। प्रत्याख्यानावरण चतुष्कके अवक्तव्यपदके बन्धक जावाका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह दिन-रात है। तथा जिन प्रकृतियोंकी अनन्तभागवृद्धि, अनन्तभागहानि और अवस्थितपद है, उनके इन पदोंके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सातावेदनीय आदि और तिर्यञ्चायुकी चार वृद्धि, चार हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवों का अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार परावर्तमान सब प्रकृतियों का भङ्ग जानना चाहिए । नरकायु, मनुष्यायु और देवायुकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है । वैक्रियिकषट्क और आहारकद्विककी असंख्यातगुणबृद्धि और असंख्यातगुणहानिक बन्धक जीवों का अन्तरकाल नहीं है। तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदक बन्धक जीवों का जघन्य अन्तर एक समय है और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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