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पदणिक्खेवे सामित्त
२१६ उक० वड्डी हाणी अवट्ठाणं ओघं। णिहा-पचला-असादा०-छण्णोक० उक्क० वड्डी कस्स० ? अण्णद० यो अट्ठविध तप्पाओग्गजह जोगट्ठाणादो उकस्सजोगट्ठाणं गदो सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? सत्तविधबंधगो मदो तप्पा
ऑग्गजह० पडिदो तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविध उक०जोगी पडिभग्गो तप्पाङग्गजह० पडिदो अट्ठविधबंधगो जादो तस्स उक्क० अवट्ठाणं । अपचक्खाण०४ असंजद० पचक्खाण०४ संजदासंजदस्स । चदुसंजल-पुरिस०दोआउ०, ओषभंगो। मणुसग० उक्क. वड्डी कस्स० ? यो अट्ठविध तप्पाओग्गजह जोगट्ठाणादो उक्क० जोगट्ठाणं गदो एगुणतीसदिणामाए सह सत्तविधबंधगो जादो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो सत्तविधबंधगो उक्क जोगी पडिभग्गो तप्पाऑग्गजह पडिदोअट्ठविधबंधगो० तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं। एवं ओरा०-ओरा०अंगो०-वञ्जरि०-मणुमाणु० । देवगदि०४ मूलोयं । पंचिंदि० उक० वड्डी अवट्ठाणं देवगदिभंगो । हाणी मदो देवेसु उववण्णो एगुणतीसदिणामाए सह सत्त
अवस्थानका भङ्ग ओघके समान है। निद्रा, प्रचला, असातावेदनीय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करनेवाला जो अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला जो जीव मरा और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा,वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कोका बन्ध करने लगा, वह उनके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके तीन पदोंका स्वामित्व असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके और प्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीन पदोंका स्वामित्व संयतासंयत जीवके कहना चाहिए । चार संज्वलन, पुरुषवेद
और दो आयुका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगतिकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्तकर नामकर्मकी उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला और उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानमें गिरा और आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार औदारिकशरीर, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीकी वृद्धि आदि तीन पदोंका स्वामित्व जानना चाहिए। देवगतिचतुष्कका भङ्ग मूलोधके समान है। पञ्चेन्द्रियजातिकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग देवगतिके समान है। उत्कृष्ट हानि-जो जीव मरा और देवोंमें उत्पन्न होकर नामकर्मको उनतीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मोका बन्ध करने लगा,वह
१. ता०प्रतौ 'अवठ्ठा० [क० १] यो' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'अवठ्ठाण । [ क्रमागतताडपत्रस्यात्रानुपलधिः । अक्रमयुक्तमन्यं समुपलभ्यते । एवं' इति पाठः। ३. ता०प्रतौ 'मणुसाणु० देवगदि मूलोघं" इति पाठः
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