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भुजगारबंधे फोसणाणुगमो
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प्रमाण कहा है । किन्तु स्त्यानगृद्धि आदिके अवक्तव्य पदकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका ही स्पर्शन सम्भव है, क्योंकि देवियोंके विहारादिके समय इन प्रकृतियों का यह पद सम्भव है। यद्यपि अन्य गतियों में भी यह पद होता है पर इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे इसीके अन्तर्गत है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है। स्त्रीवेद आदिके सब पदोंकी अपेक्षा तथा पञ्चेन्द्रियजाति आदिके अवक्तव्य पदकी अपेक्षा भी यह स्पर्शन वसनालीके कुछ कम चौदह भागप्रमोण प्राप्त होनेसे उक्त प्रमाण कहा है। यहाँ निद्रा-प्रचला आदिका अवक्तव्यपद जिस अवस्था में होता है, उस अवस्था सहित उन जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे उसे क्षेत्रके समान कहा है। दो आयु आदिके सब पदोंकी अपेक्षा तथा दो गति आदि, वैक्रियिकशरीरद्विक और बादर प्रकृतिके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा भी स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण प्राप्त होनेसे यह भी क्षेत्रके समान कहा है। कारणका विचार सर्वत्र कर लेना चाहिए । देवियोंके बिहारादिके समय और ऊपर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समु. द्वात करते समय भी मिथ्यात्वका अवक्तव्य पद सम्भव है, इसलिए इस पदकी अपेक्षा
सनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। उद्योत और यश कीर्तिके सब पदोंकी अपेक्षा भी यह स्पर्शन बन जाता है, इसलिए यह भी उक्तप्रमाण कहा है। नीचे कुछ कम छह राजूप्रमाण क्षेत्रमें मारणान्तिक समुद्भात करते समय नरकगतिद्विक
तीन पद और ऊपर कुछ कम छह राजप्रमाण क्षेत्र में मारणान्तिक समुद्रात करते समय देवगतिद्विकके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके इन पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन कहा है । तथा इन दोनों स्पर्शनोंको मिला देनेपर वैक्रियिकद्विकके तीन पदोंकी अपेक्षा स्पर्शन प्राप्त होता है, इसलिए इनके उक्त पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । देवियोंके विहारादिके समय तथा तिर्यञ्चों और मनुष्योंके नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी पञ्चेन्द्रियजाति आदिके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके उक्त पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । देवियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय औदारिकशरीरका अवक्तव्यपद सम्भव है, इसलिए इसके इस पदकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। देवियोंके विहारादिके समय तथा ऊपर सात और नीचे छह , इस प्रकार कुछ कम तेरह राजका स्पशन करते समय भी बादर प्रकृतिके तीन पद सम्भव है, अतः इसके इन पदोंकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। सूक्ष्मादि तीन प्रकृतियोंका बन्ध तिर्यश्च और मनुष्य ही करते हैं और स्त्रीवेदी इन जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है, इसलिए इनके इन तीन पदोंकी अपेक्षा उक्तप्रमाण स्पर्शन कहा है। पहले अयशःकीर्तिको भी स्त्यानगृद्धित्रिकदण्डकके साथ गिना आये है। किन्तु उसके अवक्तव्यपदके स्पर्शनमें उक्त प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके स्पर्शनसे फरक है, क्योंकि ऊपर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय भी इसका अवक्तव्य पद होता है, देवियोंके विहारादिके समय तो सम्भव है ही, अतः इसके अवक्तव्यपदकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन अलगसे कहा है । कुछ अपवादको छोड़कर पुरुषवेदवाले जीवोंमें यह स्पर्शन बन जाता है, अतः उनमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान जाननेकी सूचना की है। पुरुषवेदियोंमें एक अपवाद तो तीर्थङ्कर प्रकृतिकी अपेक्षासे है। बात यह है कि ओघमें इस प्रकृतिके तीन पदोंकी अपेक्षा जो कुछ कम आठ राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है वह पुरुषवेदी जीवोंमें ही सम्भव है, क्योंकि तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध करनेवाले जीव देवियोंमें नहीं उत्पन्न होते-यह इस स्पर्शनसे स्पष्ट हो जाता है । दूसरा अपवाद अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और औदारिकशरीरके अवक्तव्यपदके स्पर्शनकी अपेक्षा है।
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