________________
६. नग्न सत्य
रात का नीरव वातावरण । कलाकार ने प्रस्थान की पूरी तैयारी कर ली । अपना सारा सामान बांधकर एक ओर रख दिया। देवी चन्द्रसेना का निरावरण चित्र, एक सफेद कपड़े में लपेटकर पृथक् रख दिया और वह निद्रादेवी की गोद में चला
गया ।
सूर्योदय से पूर्व वह जागा स्नान, पूजा आदि से निवृत्त हो अपने अश्व के अतिथिगृह से बाहर निकला। उसने अतिथिगृह की प्रत्येक परिचारिका को एक-एक स्वर्णमुद्रा भेंट में दी और अपने मार्गदर्शक को साथ ले आगे चल पड़ा । उसने वस्त्र से ढंके चित्र को साथ में ले लिया । धीरे-धीरे चलते हुए वह एक घटिका के बाद देवी चन्द्रसेना के विशाल भवन के पास पहुंचा उसने अपने अश्व की लगाम मार्ग-दर्शक को सौंपते हुए कहा- 'तुम यहीं खड़े रहो। मैं यह चित्र देवी को देकर तत्काल लौट रहा हूं ।'
1
कलाकार चित्र लेकर भवन की सोपान वीथी तक पहुंचा । देवी चन्द्रसेना की परिचारिका विनोदा वहां खड़ी थी । उसने कलाकार का भावभीना स्वागत किया ।
सुशर्मा ने पूछा - 'देवी क्या कर रही हैं ?"
'स्नान आदि से निवृत्त होकर देवी वस्त्रखंड में गई हैं । आप मेरे साथ ऊपर चलें ।'
सुशर्मा विनोदा के पीछे-पीछे चल पड़ा ।
चन्द्रसेना के मुख्य खंड में एक आसन पर कलाकार को बिठाते हुए विनोदा बोली- 'देवी अभी पधार रही हैं, आप यहां बैठें ।'
'जी ! ... मुझे अभी-अभी प्रस्थान करना है, इसलिए विलम्ब न हो ।'
'मैं देवी को आपके आगमन की सूचना देने जा रही हूं, आप निश्चिन्त रहें, कहकर विनोदा तत्काल देवी के वस्त्रखंड की ओर गई ।
लगभग आधी घड़ी बीती होगी कि देवी चन्द्रसेना दिव्यवस्त्र और अलंकारों से सज्जित होकर वहां आ पहुंची। उसको देखते ही आर्य सुशर्मा खड़ा हुआ और
२८ महाबल मलयासुन्दरी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org