________________
होकर भाग गया।
मूच्छित मलया अकेली शिला पर रह गई।
भीमकाय भारण्ड पक्षी की दृष्टि मलया पर पड़ी और वह विमान की भांति तीव्र गति से नीचे आया और अपने विशाल पंजों से मलया के शरीर को उठाकर उड़ गया।
कारु सरदार भारण्ड पक्षी के पंजों में फंसी मलया को देखता रहा। किन्तु अब वह क्या कर सकता था ? भारण्ड पक्षी कुछ ही क्षणों में अदृश्य हो गया । मध्याह्न का समय आ गया। मलया की मूर्छा टूटी । अपने को पक्षी के पंजे में जानकर वह चौंकी।
न वहां पहाड़ी थी, न पुजारी था और न सरदार था। ऊपर आकाश और नीचे अथाह जल से भरा समुद्र था। उसने देखा एक विशालकाय पक्षी उसको पंजे में लेकर उड़ रहा है। 'ओह ! यह क्या हो गया ? यह विपत्ति कहां से आ टपकी ? मलया ने सोचा-या तो यह पक्षी मुझे खा डालेगा अथवा सागर में मेरी जल-समाधि होगी।
कहां है बलसार का यानपात्र ? कहां है ऊर्मिला और कहां है छोटा शिशु ''सुकुमार पुत्र ?
कर्म की गति विचित्र होती है।
मलया नमस्कार महामंत्र के जाप में लीन हो गई। एक भयंकर चीख सुनकर उसकी लीनता टूटी। उसने सोचा-अरे ! इस अनंत आकाश में इतनी भयंकर चीख कहां से आयी ? उसने इधर-उधर देखा'"एक दूसरा भारण्ड पक्षी इसी ओर वायुवेग से आ रहा था।
अर्धघटिका पर्यन्त यह दौड़ चलती रही। सूर्य अस्ताचल की ओर प्रयाण कर रहा था।
और दोनों भारंड पक्षी निकट हो गए। मलया को पंजों में पकड़े हुए भारंड पक्षी ने नीचे उड़ान भरी और वह सागर की लहरों का स्पर्श करने लगा। इतने में ही दूसरा भारंड पक्षी उस पर झपटा और पुनः ऊपर उठ गया। एक घटिका पर्यन्त यह विचित्र युद्ध चलता रहा। मलया ने जान लिया कि अब मौत के सिवाय कुछ चारा नहीं है। ___ जब मौत की घड़ी निकट हो तब मनुष्य को और अधिक सावचेत हो जाना चाहिए।
मलया ने नेत्र बंद किए और भावना को केन्द्रित कर वह महामंत्र के जाप में लीन हो गई।
दोनों पक्षियों का युद्ध चल रहा था। कभी वह नीचे आता और कभी ऊपर
महाबल मलयासुन्दरी २६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org