Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 279
________________ 'राधिका ! मैं तुझे तीन दिन का समय देता हूं। तू उसे समझाकर मेरे काम को पूर्ण करा देना अन्यथा चौथे दिन मैं स्वयं प्रयत्न करूंगा।' ____ 'कृपावतार ! आप निश्चिन्त रहें 'कल की रात्रि आपके जीवन की मधुयामिनी बनेगी ''मैं मलया को समझा लूंगी. स्त्रियों को वैभव अत्यन्त प्रिय होता है और इसी में फंस जाती हैं।' ___राजा ने राधिका की ओर प्रसन्नदृष्टि से देखते हुए कहा-'तेरी चतुराई के प्रति मेरा विश्वास है।' . राजा कंदर्प अपने स्थान पर चला गया। परन्तु राधिका को यह ज्ञात नहीं था कि मलया कच्ची माटी से बनी हुई नहीं है 'इसको प्राणों से भी अधिक प्रिय है शील, सतीत्व'' 'जो नारी अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने एकाकी पुत्र का भी परित्याग कर सकती है, वह नारी कभी वैभव के प्रलोभन में झुक नहीं सकती। परन्तु राधिका को यह कल्पना नहीं थी। उसने राजा की काम-पिपासा को पूर्ण करने के लिए अनेक स्त्रियों को प्रस्तुत किया था, इसलिए वह मानती थी कि दुःख से पीड़ित मलया भी सुख के चरणों में लुट जाएगी। . राधिका ने मलया को समझाने का निश्चय किया। २७० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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