Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 293
________________ ले उधर आते हुए दिखलाई दिए। वे मशाल के प्रकाश में कुछ खोज रहे हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा था। ___मलया ने सोचा--राजा के सिपाही उसकी टोह में इधर-उधर घूम रहे हैं। उसने परस्पर बातचीत करते हुए उनके शब्द सुने । उसने राजा का स्वर पहचान लिया। उसने सोचा-यदि वे यहां आ जायेंगे तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाएगी। ___ अब क्या करना चाहिए ? अनेक विचारों के उतार-चढ़ाव में उलझती हुई मलया वहीं बैठी रही। राजा और राजा के सैनिक कुछ दूर थे और मलयासुन्दरी को ढूंढ़ रहे थे। मनुष्य जब अत्यन्त दुःखी हो जाता है और विपत्तियों का भार ढोते-ढोते थक जाता है तब उसमें जीवन की आशा क्षीण हो जाती है। मलया का मन टूट चुका था। उसे लग रहा था कि संभव है वह पुनः राजा की बंदी बन जाए। वहां से पलायन करना असंभव था। उसने सोचा-इस दुःखी और अनन्त पीड़ाओं के आवर्त में फंसे जीवन से तो मरना अच्छा है। क्यों न मैं अब अपना जीवन का अंत कर पीड़ाओं से मुक्त हो जाऊं ! पास में कुआं है। मैं उसमें कूदकर अपना प्राणान्त क्यों न कर दूं ! दूसरे ही क्षण उसने सोचा, जिनेश्वरदेव ने आत्महत्या को घोरतम पाप कहा है। जो एक बार आत्महत्या करता है उसे अनेक जन्मों तक दुःखी होना पड़ता है। किन्तु जीवन के बोझ को हल्का करने का और कोई उपाय नहीं था। इतने दिन तक मलया इसी आशा-तंतु के सहारे जी रही थी कि उसे प्रियतम मिलेंगे, पुत्र के दर्शन होंगे। किन्तु निराशा ही उसे हाथ लग रही थी । अब वह जीवन से ऊब चुकी थी। ___इन विचारों के तूफान में उलझती हुई मलया उठी और कूप की ओर चल पड़ी। उसो क्षण कुछ आवाज सुनकर महाबल जाग उठा। मलयासुन्दरी कूप के पास पहुंच गई । वह नहीं जानती थी कि कुआं कितना गहरा है ? उसमें पानी है या नहीं ? मलया इस कूप से सर्वथा अजान थी। मलया ने कूप के भीतर झांककर देखा' 'भयंकर अंधकार में कुछ भी नहीं दीखा। उसने हाथ जोड़कर नवकार मंत्र का तीन बार स्मरण किया। महाबल की दृष्टि कूप की ओर गई। उसने देखा, कोई पुरुष खड़ा है। वह उठा.. उसी वक्त तीन बार नवकार मंत्र का स्मरण कर मलया ने कहा-'गगन २८४ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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