Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 299
________________ ५५. विषमुक्ति मलया के सर्पदंश का समाचार सुनते ही महाराजा कंदर्पदेव के होश-हवास उड़ गए। ___मध्यरात्रि बीत गई थी। महाराजा मलया का मधुर स्वप्न ले रहे थे 'इतने में ही महाप्रतिहार ने सर्पदंश की बात कहकर महाराजा के मधुर स्वप्न को मिट्टी में मिला दिया। वह चाहता था मलया को अपनी अंकशायिनी बनाना और उसके अप्रतिम रूप और यौवन का पान करना... सर्पदंश की बात सुनते ही राजा किंकर्तव्यविमूढ़ बन गया."उसने फिर राजवैद्यों को बुला भेजा और वह उस जीर्णशीर्ण भवन की ओर चला। उसे यह पीड़ा हो रही थी कि मलया को वैसे निर्जन भवन में रखकर अपराध किया है। __ जल्दबाजी में लिया गया निर्णय पश्चाताप का कारण ही बनता है। किन्तु अब क्या हो? वह तत्काल रथारूढ़ होकर उस भवन में आया और मलया के कक्ष में पहुंचा । वहां का दृश्य देखते ही उसकी आशाओं पर पानी फिर गया। वह इतना अवश्य जानता था कि जिस किसी व्यक्ति को सर्प ने डसा है, उस व्यक्ति के प्राण चौबीस प्रहर तक ब्रह्मरंध में टिके रहते हैं । इस एक क्षीण आशा के बल पर उसने मलया को रथ में सुलाया और राजभवन में आ गया। राजभवन में कोलाहल मच गया था। रात्रि की नीरवता भंग हो चुकी थी। राजा की आज्ञा से मलया को एक सुंदर खंड में ले जाया गया और वहां एक पलंग पर उसे लिटा दिया गया। राजवैद्य आ गए थे। एक वैद्य ने मलया की नाड़ी देखकर कहा-'महाराज ! जिस सर्प ने इस सुंदरी को डसा है वह तीव्र विषधारी सर्प होना चाहिए । देवी के प्राण ब्रह्मरंध में पहुंच गए हैं। उन प्राणों को पुनः शरीरस्थ करने में कोई औषधोपचार सफल नहीं हो सकता। क्योंकि औषधि को गले के नीचे पहुंचाना अत्यन्त दुष्कर है। देवी का आयुष्यबल बलवान् हो और पुण्य का कोई योग हो २६० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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