Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 309
________________ तुम रात भर यहीं विश्राम करो। सागरतिलक नगर का राजा कंदर्पदेव व्यभिचारी और लम्पट है । मैं उसे उचित पाठ पढ़ाऊंगा । कल मैं आम्रफलों की टोकरी के साथ उसकी राजसभा में पहुंचूंगा। मैं अब तुम्हारे साथ रहूंगा। राजा तुम्हारा कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाएगा।' महाबल ने व्यंतरदेव का आतिथ्य स्वीकार किया। राजा को सिद्धेश्वर के छलांग लगाने का समाचार ज्ञात हुआ। उसने सोचा--अब मलया मेरी है, इसमें कोई कसर नहीं रह गयी है। रात बीत गई। साथ-साथ राजा ने सोचा-उसका अवरोधक भी मिट गया । पर ... सूर्योदय हुआ। प्रथम प्रहर अभी चल रहा था। राजसभा खचाखच भरी थी। आज महाराजा कंदर्पदेव कुछ विशेष घोषणा करने वाले थे। वह घोषणा संभवतः मलया से संबंधित थी। यह बात सारे नगर में फैल गई। सभी लोग उत्सुकता से राजसभा में एकत्रित होने लगे । आज स्त्रियां भी राजसभा में आयी थीं। महामंत्री अपनी पूरी योजना उपस्थित जनता के समक्ष रखने वाला था । इतने में ही राजसभा के मुख्य द्वार पर सिद्धेश्वर के जयनाद की प्रचंड ध्वनि सुनाई दी। इस ध्वनि में उमंग थी, आनंद था । राजसभा में एकत्रित सभी नर-नारी के चक्षुयुगल उस ध्वनि की ओर आकृष्ट हो गए। सभी उस ओर देखने लगे । राजा, मंत्री और मलया तथा सभी रानियां उस ओर देखने लगीं। ___कंधे पर आम की टोकरी उठाए महाबल सिद्धेश्वर धीरे-धीरे राजसभा में प्रवेश कर रहा था। महामंत्री जीवक और महाराजा कंदर्पदेव आश्चर्यचकित रह गए-अरे ! क्या यह व्यक्ति लोह-निर्मित है कि मौत भी इससे दूर भाग जाती है ? सिद्धेश्वररूपी महाबल सभी को मस्तक नमाता हुआ आगे बढ़ा। उसने आम का करंडक वहां रखा। उसमें अदृश्य रूप से व्यंतरदेव छिपा हुआ था। उसने केवल महाबल को सुनाते हुए कहा—'वत्स ! मेरी सूचना को याद रखना.. मैं तुम्हारे साथ ही हूं।' ____ महाबल ने मन-ही-मन व्यंतरदेव का आभार माना । - महाबल मंच पर गया। करंडक रखकर उसने महाराजा से कहा'कृपावतार ! आपने मित्रभाव से जो कार्य मुझे सौंपा था, वह मैंने पूर्ण कर दिया है। इस करंडक में अप्राप्य आम्रफल भरे हुए हैं।' __ सभी सदस्यों ने हर्षनाद किया। ३०० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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