Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 311
________________ हों, शांत हों, आपकी क्रोधाग्नि में अनेक जीव जलकर भस्म हो जाएंगे।' तत्काल ज्वाला शांत हो गई। महाबल ने करंडक में से दो आम्रफल निकाले और राजा के समक्ष उन्हें प्रस्तुत करते हुए कहा-'कृपावतार ! ये देखें, ये दिव्य आम्रफल हैं।' 'नहीं'नहीं''नहीं'इन जादुई फलों को दूर रखो।' महाबल बोला-'महाराज ! इसमें कोई जादू नहीं है । आप गौर से देखें, पके हुए और अमृतमय ये आम्रफल हैं।' किन्तु राजा की हिम्मत नहीं हुई । उसने सोचा----कहीं मंत्री जैसी हालत न हो जाए? राजा ने दूसरे व्यक्तियों को आम लेने के लिए कहा। • राजा को मन-ही-मन विश्वास हो गया कि ये वे ही अलभ्य आम्रफल हैं। महाबल बोला-'आपका कार्य संपन्न हुआ। अब मैं मलया को साथ ले अपने गांव जाना चाहता हूं।' राजा बोला-'मित्रवर ! एक कार्य शेष है। वह तुम्हारे जैसे साहसी और शक्तिशाली व्यक्तियों से ही संपन्न हो सकता है।' महाबल बोला-'आप अपना कार्य बताएं। अब यह अंतिम कार्य होगा। इसको संपन्न कर मैं यहां पल भर भी नहीं रुकंगा।' राजा बोला--'सिद्धेश्वर ! यह मेरा अंतिम कार्य है। अनेक वर्षों से मेरी यह लालसा है कि जैसे मैं आगे देख सकता हूं वैसे ही मैं पीछे भी देख सकू। मुझे पीछे देखने के लिए मुड़ना न पड़े। ऐसी कोई पीठ पर आंख लगा दो । मेरी लालसा पूरी हो जाए। यह सुनकर सारी सभा स्तब्ध रह गई। महाबल भी असमंजस में पड़ गया। जो सर्वथा अशक्य है, उसे शक्य कैसे बनाया जा सकता है ? . . . महाबल चिन्तामग्न हो गया। इतने में ही व्यंतर देव ने उसके कानों में कुछ कहा और तत्काल महाबल का उत्साह बढ़ा। उसने यह चुनौती स्वीकार कर ली। सारी सभा अवाक रह गई। महाबल महाराजा के पास आकर बोला-'आप उठे।' कंदर्पदेव तत्काल आसन से उठ गया। महाबल ने व्यंतर की सूचना के अनुसार कंदर्पदेव का मस्तक घुमा डाला। राजा चीखा, पर उसका आगे का भाग अब पीछे हो चुका था। - महाबल बोला, 'कृपावतार ! इष्टदेव की कृपा से आपका कार्य हो गया है।' परन्तु राजा इस अवस्था से आकुल हो उठा । उसने कहा---'मित्र ! बहुत पीड़ा हो रही है।' ३०२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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