Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 306
________________ समय हुआ । महाबल ने स्वयं कुटिराकार चिता में प्रवेश किया। रक्षकों ने तत्काल चिता के मुंह पर चार-पांच बड़े-बड़े लक्कड़ रख दिए। फिर चिता को चारों ओर से सुलगा दिया । मलयासुन्दरी ने यह दृश्य देखा नहीं, पर सुनते ही मूच्छित होकर गिर पड़ी। चिता धग धग् कर जलने लगी । राजा का हृदय प्रसन्न हो गया, क्योंकि सिद्धेश्वर जलकर राख हो रहा था । श्मशान की चिता जलकर ठंडी हो चुकी थी। वहां केवल राख का ढेर बचा था । रक्षकों को निश्चय हो गया था कि सिद्धेश्वर जलकर राख हो गया है । इसलिए वे श्मशान को छोड़कर चले गए । किन्तु सिद्धेश्वर तो जीवित था। जिस स्थान पर चिता की रचना की गई थी, वह स्थान परिचित था। जिस मार्ग से वह कुएं से बाहर निकला था, वह स्थान वही था, इसी गुप्त मार्ग पर उसने चिता की रचना की थी। जैसे ही चिता जलाई गई, वह गुप्त मार्ग से भीतर जाकर वहां शिलाखण्ड दे दिया था । वह गुप्त मार्ग से भीतर गया और अन्दर के चौक में निर्भय होकर बैठ गया । उसके पास मणि थी । उसने मणि को बाहर रखा सारा स्थान प्रकाश से जगमगा उठा । वह नवकार महामंत्र के जाप में तल्लीन हो गया । पूर्व वहां रहने वाला मणिधारी नाग महाबल ने इस उपकारी नाग को हटाकर बाहर आ गया । राख ठंडी हो सिर ऊंचा किया और आस-पास देखा । है - ऐसा सोचकर उसने कुछ राख रात का चौथा प्रहर प्रारम्भ होने से आया और मणि को लेकर जाने लगा । भावपूर्ण वन्दन किया और शिला को चुकी थी । उस राख के ढेर से उसने कोई रक्षक नहीं था । यह अवसर उचित अपने उत्तरी के पल्ले में बांधी और चुपचाप वहां से चल पड़ा । सूर्योदय हुआ । महामंत्री बीहड़ श्मशान में पहुंचा । राख का ढेर पड़ा था । उसने उस पर पानी गिरवाया और महाराजा के पास आ गया । सभी ने यही मान लिया था कि सिद्धेश्वर मर गया है और अब मलया राजा कन्दर्पदेव के अन्तःपुर की शोभा बढ़ाएगी। राजा इसी इन्तजार में आनन्दित हो रहा था। वह कुछ कहे, उससे पूर्व ही मुख्य द्वार पर सिद्धेश्वर की जय-जय के शब्द कान में पड़े। सभी की दृष्टि मुख्य द्वार की ओर गई । वहां एक हाथ में राख की पोटली लेकर महाबल सिद्धेश्वर मुख्य द्वार में प्रवेश कर रहा था । राजा और मंत्रियों के चेहरों पर श्याम रेखाएं अंकित होने लगीं । मलयासुन्दरी का बदन प्रफुल्लित हो गया । Jain Education International महाबल मलयासुन्दरी २९७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322