Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 301
________________ एक देश पुरस्कारस्वरूप दिया जाएगा।' ___ यह पडह सर्वत्र फैल गया, किन्तु किसी भी व्यक्ति ने इस पडह को नहीं झेला। राजा के पडह-वादक चारों दिशाओं में यह घोषणा करते हुए घूम रहे थे, पर कोई भी व्यक्ति विषमुक्त करने के लिए आगे नहीं आ रहा था। इतने में ही एक विदेशी जैसे लगने वाले सुन्दर तरुण ने उस पडह पर हाथ रखकर कहा—'अब बन्द करो अपनी घोषणा। मैं भयंकर से भयंकर विष का निवारण कर दूंगा''मुझे तुम अपने महाराजा के पास ले चलो' 'किन्तु मेरी एक शर्त माननी होगी।' 'आप हमारे साथ चलें। महाराजा आपकी शर्त अवश्य स्वीकार करेंगे।' घोषणा करने वाले ने कहा। विदेशी नौजवान को लेकर संदेशवाहक राजभवन में पहुंचे। उस समय दिन का अंतिम प्रहर चल रहा था। विदेशी युवक को राजा के समक्ष उपस्थित किया गया। महाराजा ने विदेशी युवक की ओर देखा. 'देखते ही वह चौंक उठा-अरे, यह तो वही सुंदर युवक है जो अंधकूप में मलयासुंदरी के साथ था और जिसे पुनः कूप में फेंक दिया था। इस पुरुष के कारण ही मलया मेरा सत्कार नहीं कर पाती थी, इसीलिए मैंने इसे पुनः कूप में डाल दिया था। परन्तु यह उस अंधकूप से कैसे निकला? वहां तो अभी भी सिपाही खड़े होंगे । आगे कुछ भी न सोचते हुए राजा ने पूछा-'आप कौन हैं ?' 'मैं एक विदेशी हूं। जिसे सर्प ने डसा है, वह मेरी पत्नी है। मैं भयंकर 'विष को नष्ट कर सकता हूं.''आपने जिस पुरस्कार की घोषणा करवायी है, उसे मैं नहीं चाहता । यदि आप मेरी पत्नी को मुझे सौंपने का वादा करें तो मैं कुछ ही क्षणों में मलयासुंदरी को विषमुक्त कर सकता हूं।' राजा इस शर्त को सुनकर चौंका । उसने अपने दुष्टबुद्धि मंत्री जीवक की ओर देखा। मंत्री ने पूछा"आपका शुभ नाम?' 'सिद्धेश्वर।' महाबल ने कहा। 'सिद्धेश्वर ! मलयासुंदरी आपकी पत्नी है, इसका प्रमाण क्या है ?' 'मलयासुंदरी होश में आने पर यदि मुझे पतिरूप में स्वीकार न करे तो मैं यहां से चला जाऊंगा।' महाबल ने कहा। राजा अभी चिन्तन कर रहा था। नगर के संभ्रान्त व्यक्ति, जो वहां उपस्थित थे, बोले-'महाराज ! सिद्धेश्वर का कथन न्यायसंगत है आपको इसकी पत्नी इसे सौंपनी ही चाहिए।' २६२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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