Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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महल से एक प्रहरी कोई संदेश लेकर आया है ।'
कंदर्पदेव स्वयं बाहर गया ।
प्रहरी ने मस्तक नमाकर कहा - 'कृपावतार ! गजब हो गया !' 'क्या हो गया ?'
'बंदी फरार हो गया ।'
'फरार हो गया ! अरे नालायको ! क्या तुम सब सो रहे थे ?' राजा ने तत्काल अपने सैनिकों को चारों ओर भेजा और स्वयं कुछ सैनिकों को साथ ले मलया की खोज में निकल पड़ा ।
दुष्ट राजा के पंजे से छूटकर मलया एक मार्ग पर चली जा रही थी। वह एक छोटे से गांव में पहुंच गई । मलया ने देखा, वहां दूर-दूर पर छोटे-छोटे मकान बने हैं | मलया ने रात भर वहीं रहने का निश्चय कर लिया ।
मलया एक निर्जन स्थान की ओर गई । जाते-जाते उसके कानों में घोड़े के पदचाप सुनाई दिए ।
मलया नीचे बैठकर, झाड़ी में छिप गई। दस सैनिकों की एक टुकड़ी इधरउधर देखती हुई उस स्थान से आगे निकल गई । मलया के हृदय की धड़कन कुछ कम हुई और वह लुकती-छिपती कुछ आगे बढ़ी |
वह एक स्थान पर आकर रुकी। वहां दो वृक्ष थे। पास में एक कुआं था । कुछ ही दूर पर एक मंदिर दृष्टिगोचर हुआ ।
मलयासुन्दरी एक वृक्ष की ओट में खड़ी हो गई और चारों तरफ निरीक्षण करने लगी ।
मलया को यह कल्पना नहीं थी कि पास वाले वृक्ष पर एक नौजवान छिपा बैठा है | वह विश्राम कर रहा है । वह नौजवान कोई और नहीं, स्वयं महाबल कुमार था जिसको पाने के लिए मलया तड़प रही थी ।
दो दिन से मलया को ढूंढते ढूंढते वह इसी नगर में आ पहुंचा था और प्रियतमा की खोज में हताश होकर रात्रि के प्रारंभ में यहीं आकर एक वृक्ष पर विश्राम ले रहा था ।
मलया को यह कल्पना नहीं थी कि पास वाले वृक्ष पर उसका प्रियतम विद्यमान है और न महाबल को ही यह कल्पना थी कि वहां उसकी प्रियतमा मलया आ पहुंची है।
मलयासुन्दरी को इस बात का संतोष था कि वह पुरुष रूप में है परन्तु किस ओर जाना है, यह प्रश्न उसके मन को भारी बना रहा था । यदि भागते समय पुन: वह बन्दी बना ली गई तो ? इससे तो यही उचित है कि उसी वृक्ष के नीचे रात बिताई जाए। मलया उसी वृक्ष के नीचे बैठ गई ।
लगभग अर्द्ध घटिका बीती होगी कि कुछ व्यक्ति हाथों में जलती मशालें
महाबल मलयासुन्दरी
२८३
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