Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 289
________________ मलयासुन्दरी मौन रही। मौन का दुष्परिणाम आया। राजा अत्यन्त कुपित हो गया। उसने हाथ में एक कोड़ा लिया और मलयासुन्दरी की पीठ पर उसका प्रहार करने लगा। __ मलया के पीठ की चमड़ी उधड़ गई। वह नवकार के जाप में तल्लीन हो गई। राधिका ने कहा-'कृपावतार ! आप कुपित न हों । यह पुरुष है।' 'राधिका! यह पुरुष अन्य कोई नहीं, मलयासुन्दरी ही है। इसने रूप-परिवर्तन किया है।' फिर मलया की ओर देखकर कंदर्पदेव ने कहा-'कल प्रातःकाल तक तू सही-सही बात नहीं बताएगा तो तुझे हाथी के पैरों तले रौंद दूंगा।' मलया मौन रही। राजा क्रोधावेश में बड़बड़ाता हुआ चला गया । २८० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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