Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 271
________________ इस तेज कटार को तेरे हृदय के आर-पार पहुंचा दूं.'यदि तू एक डग भी आगे आएगा तो इसी स्थान पर मेरा मृत देह मिलेगा।' उत्तरीय के छोर से रक्त पोंछते हुए बलसार ने कहा- 'दुष्टे ! मेरे प्रेम का यह जवाब दिया है तूने ? याद रखना, तेरा पुत्र अब तुझे कभी नहीं मिलेगा।' 'शील के एवज में मैं अपने पुत्र की इच्छा नहीं करती।' 'और मैं तेरे पर विपत्तियों के पहाड़ गिरा दूंगा।' 'तेरे से जो हो सके वह सब कर लेना विपत्ति के पर्वतों से टकराना मैं जानती हूं।' 'ठीक है, तू भी याद रखना !' कहता हुआ बलसार उस खंड से बाहर निकला। असह्य पीड़ा हो रही थी। ऊर्मिला बाहर खड़ी थी। बलसार ने कहा'ऊमिला, मेरे खंड में चली आ।' बलसार अपने खंड की ओर चला। इच्छा न होते हुए भी ऊर्मिला उसके पीछे-पीछे चली। दूसरे दिन यानपात्र गन्तव्य पर पहुंच गया। बलसार मिला और एक दास को साथ लेकर नगर में गया। रास्ते में एक सरदार मिला। बलसार ने उसे पहचान लिया। बलसार बोला- 'सरदार ! इस बार मैं अच्छे-अच्छे जवाहरात लेकर आया हूं।' सरदार ने मिला की ओर इशारा करते हए पूछा--'ऐसे रत्न या इससे अच्छे ?' __ मलया के प्रति बलसार के हृदय में क्रोध की आग धधक रही थी। वह तत्काल बोला-'सरदार ! एक सर्वश्रेष्ठ रत्न लाया हूं।' 'कहां है ?' 'रत्न को बाहर नहीं रखा जाता। वह मेरे वाहन में है।' 'उसका मूल्य ? 'एक बार देख लो, फिर मूल्य की बात करेंगे।' 'किन्तु मुझे कल ही अपने साथियों के साथ यहां से चले जाना है।' सरदार ने कहा। 'तो आज रात में आना' - 'मैं रत्न दिखाऊंगा'"तू जितना धन देना चाहेगा, वह साथ ले आना...' 'मेरे सिवाय उस रत्न को औरों के हाथ मत बेच देना।' सरदार ने कहा । बलसार ने मस्तक हिलाकर स्वीकृति दी। उसको अनायास ही मलया के चपेटा-प्रहार का बदला लेने का अवसर मिल गया । बलसार को हीरे-माणक के टुकड़े देकर कारु सरदार मूच्छित मलयासुंदरी को नौका में डालकर चलता बना। २६२ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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