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वह किसी आकस्मिक विपत्ति में फंस गयी हो...।'
'कोई भूत-प्रेत या पिशाचिनी होगी तो?'
महाबल ने प्रियतमा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा--'प्रिये ! यदि ऐसा कुछ भी होगा तो भी भयभीत होने का कोई कारण ही नहीं है। मेरा कलेजा मजबूत है। तू यहीं इसी वृक्ष के नीचे खड़ी रह, मैं अभी कुछ ही क्षणों में लौट आता हूं।'
वह बोली----'मैं भी साथ ही चलूंगी।'
'प्रिये ! तू थककर चूर हो गयी है। कुछ समय विश्राम कर ले । अच्छा, ठहर ''मैं तुझे पुरुषरूप में बदल देता हूं.'मेरे पास वह गुटिका है 'फिर तुझे किसी बात का भय नहीं रहेगा''यह लक्ष्मीपुंज हार भी मैं अपने पास रख लेता
यह कहकर महाबल ने अपनी विज्ञानसिद्ध उस गुटिका को निकाला, आम्र के पत्ते के रस में घिसकर मलया के ललाट पर तिलक किया और मलया ने अपने गले से लक्ष्मीपुंज हार निकालकर महाबल को सौंप दिया।
थोड़े क्षणों में मलया पुरुष-रूप में आ गयी। महाबल बोला--'प्रिये ! अब ये वस्त्र तुझे शोभा नहीं देंगे।'
'दूसरा कोई उपाय नहीं है।'
'मुझे याद आ रहा है कि जब हम वट-वृक्ष की कोटर में बैठे थे तब मेरे पुराने वस्त्रों की पोटलियां थीं। जब मैं उसमें से बाहर निकला तब मेरे पैरों की ठोकर से वह वट वृक्ष से बाहर आ पड़ी थी। संभव है, वह वट वृक्ष के पास वहीं पड़ी हो' 'कहकर महाबल तत्काल वहां गया और अपने पुराने वस्त्रों की पोटली ले आगा।
मलयासुन्दरी ने अपने स्वामी के वस्त्र धारण कर लिये और अपने पुराने वस्त्र तथा शेष अलंकार उतारकर एक पोटली बांध दी।
महाबल ने वह पोटली एक वृक्ष की डाल पर बांध दी। फिर उसने कहा'मलया ! अब तू नौजवान पुरुष बन गयी है 'मुझे डर लग रहा है कि कोई देवांगना आकाश में जाते समय तुझे देखकर मोहित न हो जाए।
स्वामी की ओर देखकर मुसकराते हुए मलया ने कहा---'अब आप पधारें... शीघ्र लौट आना। मैं इसी वृक्ष के नीचे खड़ी-खड़ी आपका इन्तजार करूंगी।'
वहां से चलने से पूर्व महाबल ने अपनी अंगुली से राजमुद्रित अंगूठी निकालकर मलया की अंगुली में पहना दी। फिर महाबल वहां से चला । मलया ने कांपते हृदय से प्रियतम को विदाई दी और महाबल जिस ओर से वह करुण स्वर आ रहा था, उसी दिशा में प्रस्थित हो गया। ज्यों-ज्यों महाबल उस दिशा में आगे बढ़ रहा था, वह स्वर निकट होता जा
महाबल मलयासुन्दरी १७७
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