Book Title: Mahabal Malayasundari
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 236
________________ था वैद्यों का पुरुषार्थ । किन्तु महाराजा ने सोचा कि राक्षसी मलयासुन्दरी को यहां से विदाई देने के कारण यह प्रकोप घट रहा है । महाबलकुमार विजय प्राप्त कर नगर में आ गए। सारा नगर उस उपलक्ष्य में सजाया गया था । महाराजा तथा मंत्रीमंडल के सदस्य गांव के बाहर तक महाबल की अगवानी करने गए । महाबल ने गाजे-बाजे के साथ नगर में प्रवेश किया । उसने अपने महलों की ओर देखा । वातायन सूना पड़ा था। महल के द्वार भी बंद थे - केवल दो पहरेदार वहां खड़े थे। युवराज ने सोचा - प्रसव हो गया है या होने का समय होगा इसलिए मलया माता के भवन में होगी । ऐसा सोचकर वह माता से मिलने चला । माता ने पुत्र को छाती से लगा लिया । 1 महाबल ने पूछा- 'मां ! आपकी पुत्रवधू तो सकुशल है न ?” महादेवी को घटना ज्ञात हो चुकी थी । उसने इस समय प्रश्न को टालने के लिए परिचारिकाओं के सामने देखकर कहा - 'अरे, वहां क्यों खड़ी हो ? युवराज के स्नान आदि का प्रबन्ध करो ।' महाबल ने सोचा—मलया प्रसूतिगृह में होगी। संभव है उसने पुत्री को जन्म दिया हो, इसलिए माता बाद में बात करना चाहती हैं । स्नान - भोजन आदि से निवृत्त होकर महाबल ने पुनः मलया के विषय में पूछा । महाराजा ने कहा - 'पुत्र ! अब तू मलया को भूल जा । जिसे हम देवी मान रहे थे, वह भयंकर राक्षसी निकली ।' युवराज का मन चंचल हो उठा । महाराजा ने पूरी घटना कह सुनायी। यह सुनकर महाबल बोला- 'पिताश्री !' आपने एक निर्दोष अबला पर भयंकर अन्याय किया है। महाराजा वीरधवल की कन्या मलयासुन्दरी सर्वगुण सम्पन्न नारी थी । आपको यह बात कहने वाली कनकावती दुष्टा है. कहां है कनकावती ?” 'महाबल ! कनकावती ने सच कहा था 'मलया के वध के लिए भेजते ही उसी दिन महामारी का प्रकोप घट गया और आज किसी की मृत्यु का संवाद नहीं मिला है ।' 'पिताश्री ! मैं यह बात किसी भी स्थिति में नहीं मान सकता । आप कनकावती को बुलाएं। मैं उससे कुछ प्रश्न कर तसल्ली कर लूंगा ।' महाराजा बोले - 'महाबल ! कनकावती का भी अता-पता नहीं है। मैं उसे पुरष्कृत करना चाहता था। उसकी खोज की, पर वह नहीं मिली । वह कहां गई होगी, यह ज्ञात नहीं है ।' तत्काल महाबल खड़ा हो गया। उसने कहा - पिताजी ! आपने भयंकर अन्याय किया है । आपने मलया का ही वध नहीं करवाया है, मेरे जीवन को भी महाबल मलयासुन्दरी २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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