Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 18
________________ युधिष्ठिर आता है। उससे भी यही प्रश्न किया जाता है। युधिष्ठिर कहता है, 'मुझे चिड़िया दिखाई देती है।' द्रोणाचार्य उसे भी एक तरफ खड़े होने का संकेत करते हैं। जब अर्जुन आता है, तो उससे भी यही प्रश्न किया जाता है। अर्जुन कहता है, 'मुझे चिड़िया की केवल आंख दिखाई देती है।' गुरु द्रोण उसकी पीठ थपथपाते हैं और कहते हैं, 'तीर चलाओ।' लक्ष्य का संधान वही कर सकता है, जिसकी आंखों में सदा लक्ष्य रहता है। लक्ष्य को आंखों में बसाकर ही अर्जुन ने कभी चिड़िया की आंख को, तो कभी मछली की आंख को बेधने में सफलता पाई थी। क्षेत्र चाहे व्यवसाय का हो या साधना का, शिक्षा का हो या संस्कार का, विकास का हो या विज्ञान का, दृष्टि लक्ष्य पर हो, तो लक्ष्य अवश्य सिद्ध होगा। आपके जीवन में सफलता का सूर्योदय अवश्य होगा। आख़िर आप भी अपने कर्मक्षेत्र के अर्जुन हैं। जिन तत्त्वों को अपनाकर अर्जुन सफल हुए या दुनिया के अन्य महानुभाव जीवन और जगत के क्षेत्र में हर ओर विजयी हुए, तो आप और हम क्यों नहीं हो सकते। लक्ष्य बनाएं, पुरुषार्थ जगाएं। हमारे कर्तव्य हमें किसी देवदूत की तरह आमंत्रित कर रहे हैं। कह रहे हैं, 'जागो मेरे पार्थ! अपने कर्तव्य के लिए सन्नद्ध हो जाओ, अपने लक्ष्य को साधे बिना विश्राम मत लो, मैं तुम्हारे साथ हूं।' क्या हम इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं? संकल्प हों सुदृढ़ ध्यान रखो, अपनी जिंदगी में कोई लक्ष्य बनाओ, तो उस पर दृढ़ रहो। निश्चय सुदृढ़ है, तो सफलता भी निश्चित है। निश्चय इतना दृढ़ हो कि जब तक हमारा संकल्प, हमारा लक्ष्य पूरा न होगा, हम चैन की सांस न लेंगे। आप अपने संकल्प को बार-बार दोहराएं। ऊंचे स्वर में प्रतिज्ञा करें कि हां, मैं अपने संकल्प को हर हाल में पूरा करूंगा। अगर-मगर की बात न उठाएं। दृढ़ता और निश्चय की बात करें। एक सफल अभिनेता से जब पूछा गया कि अगर आप अभिनेता न होते, तो क्या होते? अभिनेता ने कहा, 'ऐसा हो ही नहीं सकता 17 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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