Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 77
________________ रहे. वह किसी से क्यों भय खाएगा? जीवन में सदा सजगता रहे, ईमान रहे, निर्भयता रहे, इन सबके लिए आधार-सूत्र है, आदमी स्वयं को सदा आत्मविश्वास से भरा हुआ पाए। प्रकृति की व्यवस्थाओं को स्वीकार करो। जो होनी है, उसको भी स्वीकार करो। जीवन तो किसी बाजीगर का सौदा है। यह रिस्क तो उठानी ही पड़ती है। जो यह जानकर कि मधुमक्खियों के डंक हैं, शहद के छत्ते के पास नहीं जाता, वह शहद पाने के योग्य नहीं होता। तुम भयभीत मत होओ। अपना मनोबल जाग्रत करो। सृष्टि को तुम्हारी ज़रूरत है। तुम सृष्टि की आवश्यकता हो। अगर आवश्यक न होते, तो सृष्टि तुम्हें स्वीकार ही न करती। तुम धरती के लिए उपयोगी हो। अपनी उपयोगिता सिद्ध करो। बांधे बिखरे सुरों को जहां अभय-दशा है, वहीं अहिंसा की दशा है। जहां अभय और अहिंसा दोनों हैं, वहां साधना और सफलता स्वयं ही अपना परिणाम देने के लिए तत्पर रहती हैं। दो ही आधार हैं, अभय और अहिंसा। दोनों एक-दूसरे के पूरक और पर्याय बनकर ही दुनिया में फिर से किसी संजय, किसी अशोक को जन्म देते हैं। हम अपने जीवन की अभय और आत्मविश्वास से आपूरित करें। व्यर्थ कोई भाग जीवन का नहीं है, व्यर्थ कोई राग जीवन का नहीं है। बांध दो सबको सुरीली तान में तुम, बांध दो बिखरे सुरों को गान में तुम।। जीवन को हम सुरीली तान से भरें। अपने बिखरे स्वरों को गीतों में बांधे। जीवन संगीत और सौंदर्य से भरा जा सकता है। बस, आत्मविश्वास चाहिए, अभय-दशा चाहिए। ध्यान रखो, मौत जीवन में एक बार ही आती है, दो बार नहीं और वह भी उसी दिन, जिस दिन आनी है। फिर भय किस बात का, चिंता किस बात की! सदा मस्त रहो, निर्भय और आत्मविश्वास के स्वामी बनो। Jain Education International For Personla Private Use Only www.jainelibrary.org

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