Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 84
________________ है, तो बच्चे भी प्रेम की भाषा सीखेंगे । व्यक्ति चाहता है कि बच्चे संस्कारित हों, आज्ञाकारी हों, विनम्र हों, तो वह घर का वातावरण वैसा ही संस्कारवान बनाए । एक व्यक्ति को चोरी के अपराध में न्यायाधीश द्वारा सजा सुनाई जा रही थी । न्यायाधीश ने कहा, 'तुम्हारी चोरी सिद्ध होती है और तुम्हें छः माह की सजा मुकर्रर की जाती है ।' उस व्यक्ति ने कहा, 'ठहरो जज साहब, मुझे दंड देने से पहले मैं चाहता हूं कि मेरी मां को भी सजा मिले, मेरे पिता को भी सजा मिले ।' जज ने पूछा, 'उन्हें किस अपराध में सजा दी जाए ?” व्यक्ति ने कहा, 'मुझे जो सजा मिली है, उसके असली हकदार तो वे ही हैं। उन्हीं के कारण मुझमें अपराध की प्रवृत्ति पनपी । अगर वे पहले दौर में ही मेरी अपराधी प्रवृत्तियों पर अकुंश लगा देते, तो यह नौबत ही नहीं आती ।' इसके विपरीत, एक बार एक बच्ची से उसके अध्यापक ने पूछा, 'बिटिया, आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम सबके साथ इतनी शालीनता से, इतनी मधुरता से पेश आती हो ? यह सीख तुमको किससे मिली?' बच्ची ने कहा, 'सर, इसमें नई बात कौन-सी है ? मेरे घर में सारे ही लोग एक-दूसरे से इसी तरह पेश आते हैं ।' अध्यापक कह उठा, 'धन्य है तुम्हारे परिवारजनों को कि जहां घर का वातावरण ही इतना शालीन है ।' आप यदि घर में 'तुम - तुम' कहोगे तो आपका बच्चा भी दूसरों को 'तुम' कहेगा । आजकल एक फैशन-सा चल पड़ा है कि पति हमेशा अपनी पत्नी को 'तुम' कहता है और पत्नियां भी कहां पीछे हैं, वे भी अपने पति को बेधड़क 'तुम' कहती हैं । अगर आप किसी को 'तुम' कहते हो, तो 'तुम' कहना अपने आप में दूसरे को अपमानित करना हो गया। पति-पत्नी आपस में 'तुम' कहने की बात तो छोड़ें, अपने बच्चों को भी 'तुम' न कहें। अगर आप ऐसा करते हैं, तो आपका बच्चा ज़िंदगी में किसी को 'तुम' नहीं कह पाएगा। आपके घर का वातावरण ही आपके बच्चे में वांछित संस्कारों का बीज बो सकता है । Jain Education International 83 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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