Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 78
________________ स्वस्थ सोच के स्वामी बनें स्वास्थ्य बेशकीमती दौलत है । स्वस्थ जीवन का स्वामी होने के लिए जितना शरीर का स्वस्थ होना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी मनो-मस्तिष्क का स्वास्थ्य है । स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन का आधार बनता है और स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर का निमित्त । शारीरिक स्वास्थ्य की उपलब्धि के लिए दुनिया-भर में कई-कई चिकित्सक हैं, कई-कई चिकित्सालय हैं । सात्विक और संतुलित आहार, व्यायाम, स्वच्छ जलवायु, शरीर के स्वास्थ्य को उपलब्ध करने के ये सहज सोपान हैं । संपूर्ण स्वास्थ्य की दृष्टि से शरीर के साथ मन और मस्तिष्क का स्वास्थ्य भी उतना ही ज़रूरी है । तुम अगर बुरा नहीं सोचते हो, तो निश्चित मानकर चलो कि तुम न बुरा देखोगे, न बोलोगे, न सुनोगे । 1 अगर हम शरीर की दृष्टि से देखें, तो इनसान शरीर से बहुत ही निर्बल और असहाय नज़र आता है । वह न तो किसी चिड़िया की तरह आसमान में उड़ सकता है, न ही किसी मगरमच्छ या मछली की तरह पानी में तैर सकता है और न ही किसी तितली या भौंरे की तरह फूलों पर मंडरा सकता है । मनुष्य के पास न तो बाज़ - सी दृष्टि है और न बाघ - सी ताकत, न ही चीते की फुर्ती ही है। इनसान की हैसियत इतनी-सी होती है कि एक छोटा-सा मच्छर, एक छोटा-सा बिच्छू भी डंक मार दे, तो वह तिलमिला उठता है, उसकी काया उसी समय धराशायी हो जाती है । Jain Education International - न जन्म, न मृत्यु इनसान अपने शरीर की दृष्टि से बहुत ज़्यादा समर्थ-संपन्न और सक्षम नहीं होता, मगर कुदरत ने मनुष्य को एक बहुत बड़ी अकूत 77 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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