Book Title: Lakshya Banaye Safalta Paye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 38
________________ चिंतन एक नए आविष्कार का सूत्रधार | दिल प्रेम के लिए है। बन जाया करता है। जिस गदगा स सभा | कृपया उसे नफ़रत के घृणा करते हैं, वह खाद बनकर किसी फूल | खून से लथपथ कसाई को खिलाने की सामर्थ्य रखती है, खुशबू | खाना मत बनाओ। लुटाने का माद्दा रखती है। जब गंदगी | -प्याले में तूफ़ान भी उपेक्षा योग्य नहीं है, तो मनुष्य अपने को दीन-हीन क्यों माने? उसके जीवन में भी चमत्कार घटित होने की भरपूर संभावनाएं हैं। जगह बनाएं औरों के दिलों में आदमी जन्म के साथ अकेला पैदा होता है और मृत्यु के साथ अकेला ही जाता है, लेकिन जीवन-भर अपने आपको लोगों से घेरे रखता है, रिश्तों का नाम देकर, समाज की संज्ञा देकर। महत्त्व इस बात का नहीं है कि आदमी समाज में जीता है या समाज से हटकर, महत्त्व इस बात का है कि वह सबके बीच जीते हुए सबके दिलों में अपना कितना मोहब्बत-भरा स्थान बना पाता है। समाज के बीच जीना आदमी का सौभाग्य है, लेकिन आदमी के दिल में अपनी जगह बना लेना उसकी अपनी विशेषता है। कुछ फूल कागज़ के होते हैं, जिन्हें गुलदस्तों में सजाया जाता है और कुछ फूल ऐसे होते हैं, जिनकी सुवास और प्राणवत्ता के कारण हम उन्हें अपने गले का हार बनाते हैं, अपने शीश पर अंगीकार करते हैं। ओ आजकल के दोस्तो, ये काग़ज़ के फूल हैं। हैं देखने में खुशनुमा, पर सूंघने में धूल हैं। जिस फूल में खुशबू है, वह फूल गले का हार है। जिस फूल में खुशबू नहीं, वह फूल ही बेकार है। जिस फूल में अपनी कोई सुवास और सौरभ नहीं, उस फूल को फूल कैसे कहा जाए? आदमी की प्राणवत्ता और जीवंतता समाज के 37 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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